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________________ १० सूरीश्वर और सम्राट् । हिन्दुओंकी हत्या की थी। यद्यपि तैमूरलंगके आक्रमणसे पठानोंके पराक्रममें कुछ न्यूनता आ गई थी और इसलिए उनके अत्याचारोंकी मात्रामें भी कुछ कमी हो गई थी, तथापि उनका जातीय स्वभाव सर्वथा मिट नहीं गया था। सिकंदर लोदीने देवमंदिरों और मूर्तियोंको तोड़नेका कार्य बराबर जारी ही रक्खा था। इसी भाँति अनेक विपत्तियाँ झेलते हुए भारतने ईस्वी सन्की पन्द्रहवीं शताब्दि समाप्त की। अब हम सोलहवीं शताब्दिमें पदार्पण करते हैं। प्रस्तुत पुस्तकमें हम इसी शताब्दिकी स्थितिका दिग्दर्शन कराना चाहते हैं। यद्यपि सोलहवीं शताब्दि प्रारंभ हो गई थी, तथापि भारतवर्षके दुःखके दिन तो दूर नहीं ही हुए थे। मुसलमान बादशाहोंका जुल्म जैसाका तैसा ही कायम था । इतना होने पर भी साभिमान यह कहना पड़ता है कि, भारतमें 'आध्यात्मिक भावनाएँ ' और 'आर्यत्वका अभिमान ' पूर्ववत् ही मौजूद था। भारतकी प्रजाने अपनी जातीयताकी रक्षाके सामने लक्ष्मीकी कोई परवाह नहीं की थी। इतना ही क्यों ? उसने 'धर्मरक्षा ' को अपना ध्येय बना कर प्राणोंको भी तिनकेके समान समझा था । यद्यपि लोभाविष्ट मुसलमान बादशाहोंने कई वार भारतको लूटा था और लूटका धन लेजा कर अपने घरोंमें भरा था, तथापि भारत सर्वथा ऋद्धि-समृद्धिहीन नहीं हो गया था। उदाहरणके लिए इतिहासके पन्ने उलटो। महमूद गजनवी आदिकी लूटके वृत्तान्त उनमें मिलेंगे । कहा जाता है कि, सन् १०१४ ईस्वीमें जब उसने काँगड़ाका (जिसको पहिले नगरकोट अथवा भीमनगर कहते थे) दुर्ग अपने अधिकार किया था, तब वहाँसे उसे अपार संपत्ति मिली थी। उसमें एक 'चाँदीका बँगला' भी था । इस बँगलेकी लंबाई ९० फीट और चौड़ाई ४५ फीट थी। वह इकट्ठा हो सकता था; एक जगहसे दूसरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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