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________________ सूरीश्वर और सम्राट्। गई गुजरी हालतमें भी वह पूर्ण गौरवसे गौरवान्वित है । समस्त संसार एक स्वरसे कह रहा है कि, एक समय था जब भारतका प्रताप अनिर्वचनीय था । भारतकी वीरता झगमगा रही थी। प्रकृतिने उसको वह शक्ति दी थी कि, जिससे यह भारतीय प्रजा 'कर्म' और 'धर्म' दोनोंमें असामान्य पौरुष दिखाती थी। ऐसे अपूर्व शान्तिके गंभीर आनंदसागरमें कल्लोल करती हुई भारतीय प्रनाको संसारकी परिवर्तनशीलताने अपना चमत्कार दिखाया । यानी जिसने कभी दुःखके दिन नहीं देखे थे, जिसको अपने आर्यत्वकी रक्षाके लिये किसी भी तरहके प्रयत्न नहीं करने पड़े थे उस परम श्रद्धालु आर्य प्रजा पर अचानक पठानोंके आक्रमण प्रारंभ हुए। हम जिस समयकी स्थितिका वर्णन करना चाहते हैं, वह समय अभी आया न था तब तक तो पठानोंने भारतकी लक्ष्मी लूटनेके मोहमें पड़ कर, अपनी क्रूरतासे भारतकी समस्त प्रजाको त्रसित करना प्रारंभ कर दिया ! जिन पठानोंने इस सिद्धान्तको ' या तो हिंदु लोगोंको इस्लामधर्म स्वीकार करायँगे या उन्हें मौतका शिकार बनायेंगे' सामने रख कर आक्रमण आरंभ किया था, उन्होंने भारतीय प्रजाको कितना सताया होगा, इसका अनुमान सहजहीमें किया जा सकता है । लाखों निरपराध मनुष्योंको मारना, जीतेजी आर्य राजाओंकी खाल खिचवा लेना, शिकारकी इच्छा होने पर पशुओंकी तरह आर्य प्रजाको घेरना और उसमें आनेवाली स्त्रियोंको, पुरुषोंको और बालकोंको बुरी तरहसे-भिन्न भिन्न तरहसे मारना, देवमूर्तियोंको तोड़ टुकड़े कर, उनके साथ मांसको बोटियाँ बाँध आर्य प्रजाके गले लटकाना आदि नाना प्रकारके दुःखोंसे समस्त भारतमें हाहाकार मच रहा था । पठान राजाओंके त्राससे त्रसित आर्य प्रजा त्राहि त्राहि पुकार उठी थी। बंकिमचंद्र लाहिडी अपनी 'सम्राट-अकबर ' नामकी पुस्तकमें पठानोंने जो कष्ट दिये थे उनका वर्णन करनेके बाद पृष्ठ २४ में लिखते हैं: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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