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________________ परिस्थिति। MANuuNA विद्याओंके आगार यशोभद्रसूरि, तार्किक शिरोमणि मल्लवादी, ग्रंथोंकी विशेष रूपसे व्याख्याएँ लिखनेमें अपनी असाधारण बुद्धिका परिचय देनेवाले मलधारी हेमचंद्र, सिद्धराज जयसिंहकी सभाके एक रत्न होनेका सम्मान प्राप्त करनेवाले और वादकी अतुल शक्तिके धारक वादिदेवसरि और कुमारपालके समान राजाको उपदेश दे कर, अठारह देशोंमें जीवदयाका एक छत्र राज्य स्थापन करानेवाले कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचंद्राचार्यके समान महान् प्रतापी जैनाचार्य रूपी रत्नोंको भी इसी भारत वसुंधराने प्रसव किया था। साथ ही पेथडशा, झांझण, झगडुशा, जगसिंह, भीमाशा, जावड, भावड, सारंग और खेमा हडालियाके समान लक्ष्मीपुत्रोंको भी इसी भारतने अपनी गोदमें खिलाया था। इन्होंने अपनी लाखों ही नहीं, करोड़ों ही नहीं बल्कि अब्जोंकी सम्पत्तिको, भारतके भूषणरूप जिनालय बनानेमें, आर्यावर्तकी शिल्पकलाको सुरक्षित रखनेमें, आर्यबंधुओंका पालन करनेमें, अपनी मान-मर्यादाको सुरक्षित रखनेमें, बड़े बड़े संघ तथा वरघोड़े निकालनेमें और ज्ञानके साधन लुटानेमें व्यय किया था । उन्होंने धर्मकी-आर्यधर्मकी रक्षा करनेमें लक्ष्मीकी तो कौन कहे प्राणोंकी भी कभी परवाह नहीं की थी। ऐसे आस्तिक और अखूट धन-लक्ष्मीके भोक्ताओंको भी इसी आर्यभूमिने पैदा किया था। ये बातें क्या बताती हैं ? भारतका गौरव ! आर्यावर्तकी उत्तमता, दूसरा कुछ नहीं । जिस भारतमें ऐसा शान्तिमय राज्य था, ऐसी अद्वितीय विद्याएँ थीं, ऐसे दानशील थे, ऐसे जीवदया प्रतिपालक थे, ऐसी धन संपत्ति थी, ऐसा आनंद था, ऐसी उदारता थी, ऐसी विशालता थी, ऐसा प्रेम था, ऐसी धर्मशीलता थी, ऐसी वीरता थी और ऐसे अप्राप्य विद्वान् थे, उसी स्वर्ग समान भारतकी आज क्या स्थिति है ? भारतका बहुत कुछ अधःपात हो चुका है तो भी आज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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