________________
mein
सूरीश्वर और सम्राट्। इनको महावीरस्वामीके परम भक्त होनेका सम्मान प्राप्त है । राजा आम और शिलादित्यने सम्पूर्णतया जैनधर्मके गौरवकी रक्षा की थी। अन्तिम जैन राजा वनराज, सिद्धराज और कुमारपाल आदिने 'अमारी घोषणा ' कराके अहिंसाधर्मका प्रचार किया था। यह बात किसीसे छिपी हुई नहीं है। इस भाँति हिन्दु और जैनधर्मको पालनेवाले राजा ही क्यों ? शकडाल, विमल, उदयन, वाग्भट्ट और वस्तुपालके समान प्रतापी राजमंत्री भी थोड़े नहीं हुए हैं कि, जिन्होंने अहिंसा- धर्मके फैलानेका प्रशंसनीय उद्योग किया था और जिनका प्रताप समस्त भारतमें फैल रहा था।
एक ओर वीरप्रसू भारत माताने ऐसे ऐसे वीर-आर्यधर्मरक्षक राजाओंको उत्पन्न किया था और दूसरी ओर उसने ऐसे ऐसे सच्चरित्र और प्रतापी जैनाचार्योंको जन्म दिया था कि, जिन्होंने अपने अगाध पांडित्यका परिचय दे कर जगतको आश्चर्यमें डाल दिया था। उनकी कृतियाँ आज भी संसारको आश्चर्यमें डाल रही हैं। इतना ही क्यों, उन्होंने ऐसे ऐसे असाधारण कार्य किये हैं कि, जिनका करना सामान्य मनुष्योंकी तो बात ही क्या है मगर अच्छे अच्छे शक्तिसम्पन्न मनुप्योंके लिए भी दुःसाध्य है । मौर्यवंशीय सम्राट चंद्रगुप्तको प्रतिबोध करनेवाले चौदह पूर्वधारी श्रीभद्रबाहु स्वामी, ५०० ग्रंथोंकी रचना करनेवाले उमास्वाति वाचक, १४४४ ग्रंथोंकी रचना करनेवाले हरिभद्रसूरि, हजारों क्षत्रियोंको जैन ( ओसवाल ) बनानेवाले रत्नप्रभमूरि, अन्याय-लिप्त गर्दभिल्ल राजाको प्रजाके हितार्थ राजगद्दीसे उतार कर उसके स्थानमें शकको राज्यासीन करनेकी शक्ति रखनेवाले कालिकाचार्य, आम राजाके गुरु होनेका सम्मान प्राप्त करनेवाले बप्पट्टि, 'उपमितिभवप्रपंचा कथा ' के समान संस्कृत भाषा अद्वितीय उपन्यास लिखनेवाले महात्मा सिद्धर्षि, महान् चमत्कारिणी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org