________________
परिस्थिति ।
राजा श्रीहर्ष के समय में भी भारतीय मनुष्य अखंड शान्ति सागर में स्नान कर रहे थे । यह राजा प्रजाके साथ कैसी सहानुभूति रखता था, कैसी उदारताका वर्ताव करता था, उसका हम यहाँ एक उदाहरण देंगे ।
प्रत्येक पाँच वर्ष प्रयागमें संगमका मेला होता था । उस मौके पर वह सारी सम्पत्ति--जो पाँच बरसमें एकत्रित होती थी - भिन्न भिन्न धर्मावलम्बियों को दान में दे देता था। जिस समय चीनी यात्री हुयेनसांग ( Huen Tsiang ) भारतमें यात्रा करने आया था उस समय राजा हर्षकी प्रयाग यात्राका छठा उत्सव था । हुयेनसांग भी उसके साथ प्रयाग गया था । उस समय प्रयागमें पाँच लाख मनुष्य जमा हुए थे । उनमें २० राजा भी थे । पाँच बरस में जो सम्पत्ति एकत्रित हुई थी उसको, राजकर्मचारी ७५ दिन तक दानमें देते रहे। वह धन-सम्पत्ति कितने ही कोठारोंमें भरी हुई थी । राजाने अपने रत्नजड़ित हार, कुंडल, माला, मुकुट आदि समस्त आभूषण दानमें दे दिये थे ।
भारत आर्य राजाकी यह उदारता क्या जगत्को आश्चर्यमें डालनेवाली नहीं है ? इस राजाके समयमें भी संस्कृतकी बहुत ज्यादा उन्नति हुई थी। यह भी जीवहिंसाका कट्टर विरोधी था । इसने अपने समस्त राज्य में ढिंढोरा पिटवा दिया था कि, "जो मनुष्य जीवहिंसा करेगा उसका अपराध अक्षम्य समझा जायगा और उसे मृत्यु दंड दिया जायगा "
जिन राजाओंके हमने ऊपर नाम लिखे हैं उनमें से कई जैन थे और कई जैनधर्मके साथ सहानुभूति रखनेवाले । सम्प्रति नामका राजा पक्का जैन था। उसने अनार्य देशों में भी जैनधर्मका प्रचार कराया था। इसमें उसे सफलता भी अच्छी हुई थी। राजा श्रेणिक, कोणिक और चंद्रद्योतने जैनधर्मकी प्रभावना करनेमें कोई कमी नहीं की थी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org