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________________ सूरीश्वर और सम्राट्। पालके समान हिन्दु और जैन राजाओंने भारतवर्षकी ऋद्धि-समृद्धिको भारतवर्षहीमें सुरक्षित रक्खा था; भारतकी कीर्ति सौरभको दिग्दिगान्तोंमें फैलाया था। इतना ही क्यों, अपनी समस्त प्रजाको निज निज धर्मकी रक्षा करने और प्रचार करनेमें सहायता की थी। यही कारण था कि, भारतीय सरल स्वभावी थे । वे प्रेमके एक ही धागेमें बंधे हुए थे। प्रजाको अपने धन-दौलतकी न कुछ चिन्ता करनी पड़ती थी और न कुछ प्रबंध ही । मदिरा और ऐसे ही दूसरे व्यसनोंसे लोग सदा दूर रहते थे। भारतवर्षका लेन देन प्रायः विश्वास पर ही चलता था । न कोई किसीसे किसी तरहकी जमानत लेता था और न कोई किसीसे किसी प्रकारका इकरारनामा ही लिखाता था। राजा स्वयं जीवहिंसासे दूर रहते थे और प्रनाको भी जीवहिंसासे दूर रखते थे। बहुतसे राजाओंने अपने अपने राज्योंमें शिकार द्वारा, यज्ञ द्वारा या अन्य भाँति, होनेवाली जीवहिंसा बंद कर दी थी। राजा अशोकने अपने राज्यमें इस बातकी घोषणा करवा दी थी कि,-" एक धर्मवाला किसी दूसरे धर्मकी-दूसरे धर्मवालेकी निंदा न करे । " ऐसी उदारवृत्तिवाले राजाके राज्यमें यदि प्रत्येक निर्भीकतासे अपना धर्म पालता था तो इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। सुप्रसिद्ध राजा विक्रमादित्यके समयमें भारत निस उन्नत दशामें था-जैसी इसकी जाहोनलाली थी उससे क्या कोई अनभिज्ञ है ? विद्या, विज्ञान और विविध प्रकारकी कलाओंका विस्तार इसी प्रतापी राजाके राज्यमें हुआ था। आज प्रायः संस्कृतज्ञ विद्वान् सिद्धसेन दिवाकर और कालिदासके समान कवियोंके पवित्र नामोंका बड़े सत्कारके साथ उच्चारण करते हैं । वे भारतके झगमगाते हुए हीरे थे और इसी राजाकी सभाको सुशोभित करते थे। चित्रकला और भुवन-निर्माणकला भी इसी राजाके समयमें बड़े वेगके साथ आगे बढ़ी थी। संगीत, गणित और ज्योतिष विद्याका प्रचार भी विशेषकरके इसी राजाके समयमें हुआ था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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