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सूरीश्वर और सम्राट् । सम्राट्ने एक मनुष्यको आज्ञा दी,-" मेरी तलवार, राजकीय पोषाक और राजमुकुट सलीमको दो।"
वाह ! सम्राट् तेरी उदारता ! पुत्रके, प्राणान्त कष्ट देनेवाले सब अपराधोंको भूलकर प्रसन्नतासे उसको राज्यगद्दी दी। अकबरको चेत था उस अवस्थाहीमें सलीमको तीनों वस्तुएँ सोंप दी गई। सम्राट् मानों इसी कार्यकी बाट जोह रहा था । इसके समाप्त होते ही वह सबसे अपने आराधोंकी क्षमा माँगकर, भारतको शोकसागरमें डुबाकर चल बसा । देशका दुर्भाग्य लोट आया; चारों तरफ हाहाकार मच गया। भारतको दुःखके सागरले बचानेवाला, देशकी दशाको उच्च स्थितिमें लानेवाला, भारत का दूसरा सूर्य भी अस्ताचलमें जा बैठा; भारत में पुनः अंधकाशच्छन्न होगया।
अकबरका जीवनहंस संसार सरोवर से उड़ गया; पचास वर्षके अपने शासनकालमें वह अनेक आशाएं पूरी कर, अनेक अधूरी रख चल बसा । दूसरे दिन सबेरे ही उसके स्थूल शरीरको लोग बड़ी धूम वामके साथ, मुसलमानी रिवाजके अनुप्लार, शहरसे बाहर ले गये। सलीम और उसके तीन लड़कोंने अस्थीको उठाया; किलेके बाहिरतक वे उसे लाये । उसके बाद दर्बारी और अधिकारी लोग उसे 'सिकंदरा' में ले गये। यह आगरेसे चार माइल दूर है। बहुतसे हिन्दु और मुसलमान सिकन्दरातक साथ साथ गये थे। वहाँ सम्राट्का स्थूल शरीर सदाके लिए भारतमाताकी पवित्रगोदमें समर्पण किया गया।
पीछेसे सम्राट् जहाँगीरने उस स्थानपर--जहाँ अकबरका शव गाडा गया था-एक आदर्श समाधि बनवाकर सदाके लिए अकबरका मूर्तिमान कीर्तिस्तंम स्थापित करदिया ।
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