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________________ सम्राट्का शेष जीवन । सलीम और उसका पुत्र खुसरो भी सिंहासनकी आशासे आगरे आ गये । उस समय अकबर की बीमारीमें सम्राट्का धातृ-पुत्र खाने आज़म अज़ीज़ कोका' राजका काम करता था। वह खुसरोका ससुर भी होता था । जनताका बहुत बड़ा भाग सलीमके दुश्चरित्रसे परिचित था । इससे वह खुसरोको गद्दीपर बिठाना चाहता था । ' अजीजकोका' ने जब यह प्रस्ताव सभा रक्खा, तब कई मुसलमान हर्मचारियों ने उसका विरोध किया; क्योंकि वे सलीमको चाहते थे। परिणाम यह हुआ कि, अज़ीज़कोका और राजा मानसिंहने अपना विचार बदल दिया, इच्छा न होते हुए भी सलीमको गद्दीपर बिठाने का निश्चय किया। उदरामयके रोगसे पीडित सम्राट् भारतकी दुर्दशाका विचार करता हुआ पलंगपर लेट रहा था । उसके चारों तरफ राज्यके कर्मचारी और निपुण हकीम उदास बैठे थे। उस दिन सन् १६०५ ईस्वीके १५ अक्टोबरका दिन था। समस्त आगरेमें उदासी थी। लोगोंके मुखों और दिशाओं का नूर उतरा हुआ था । अकबरके कमरेमें अनेक आदमी चुपचाप बैठे भारतकी भावी दशाका विचार कर रहे थे। उसी समय एक युवकने, अनेक मुसलमानोंके साथ प्रवेशकर, अकबरके चरणों में सिर रख दिया। यह सलीम था । सलीमके पत्थरले हृदय में आखिरी वक्त पिताकी दशासे करुणाका संचार हुआ। पिताके दुःखसे उसका हृदय भर आया; उसका कंठ बहुत देरतक रुद्ध रहा । फिर वह जारज़ार रोने लगा। वाहरे पितृ स्नेह ! तू भी अजब हैं । जो राज्यके लोभसे एक दिन पिताकी हत्या करनेको तैयार था वही आन पिताके, अनायास, चलेजानेकी आशंकासे ज़ारज़ार रोरहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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