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________________ ३५० सूरीश्वर और सम्राट्। इसलिए मुझे अपनी सेवाओंसे उन्हें प्रसन्न करनेका अवसर बिलकुल ही न मिळा ।" "स्वार्थाध होनेसे मनुष्य अपने चारों तरफ़ क्या हो रहा है सो नहीं देख सकता । कबूतरके रक्तसे सने हुए बिल्लीके पंजेको देखकर मनुष्य दुःखी होता है; परन्तु वही बिल्ली यदि चूहे को पकड़ती है, तो वह खुशी होता है । इसका कारण क्या है ? कबूतरने उसकी क्या सेवा की है कि, उसकी मृत्युसे तो उसे दुःख होता हैं और अमागे चूहेने उसका क्या नुकसान किया है कि उसकी मृत्युसे वह प्रसन्न होता है। " हम ईश्वरसे प्रार्थना करते हैं उसमें हमें ऐसे ऐहिक सुख न माँगने चाहिए कि जिनमें दूसरे जीवोंको तुच्छ समझनेका आमास हो ।।" " तत्त्वज्ञान संबंधी विवेचन मेरे लिए एक ऐसी अलौकिक मोहनी है कि, मैं और कामोंकी आपेक्षा उसीकी और विशेष आकर्षित होता हूँ। तो भी कहीं मेरे दैनिक आवश्यक कर्तव्यमें बाधा न पड़े इस खयालसे मैं तत्त्वज्ञानकी चर्चा सुननेसे अपने मनको जबर्दस्ती रोकता हूँ।" " मनुष्य-चाहे वह कोई भी हो-यदि जगतकी मायासे छूट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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