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सम्राटका शेषजीवन । अकबरकी कार्यदक्षताका ऊपर उल्लेख हो चुका है। उससे यह कहा जा सकता है कि, एक राजामें-सम्राट्में-जितनी कार्यकुशलता चाहिए उतनी उसमें थी। ऐसी कार्य-कुशलता रखनेवाला मनुष्य उदार हृदयका होना चाहिए। और तदनुसार वह उदार हृदयी था भी सही । जब हम अकबरके उच्च विचारोंका मनन करते हैं तब हम यह कहे विना नहीं रह सकते कि, अकबर केवल सम्राट ही नहीं था, बल्के वह गंभीर विचारक और तत्त्वज्ञानी भी था । यहाँ हम यदि अकबरके कुछ उच्च विचारोंका और मुद्रालेखोंका उल्लेख करेंगे तो अनुचित न होगा।
____जन परीक्षारूपी संकट सिर पर आजाय तब, धार्मिक आज्ञापालन, गुस्से से भौंहे टेढी करनेमें नहीं होता, परन्तु वैद्यकी कड़वी दवाकी तरह उसे आनंदके साथ सहन करनेमें होता है।"
" मनुष्यकी सर्वोत्कृष्टताका आधार उसका विचारशक्ति ( विवेकबुद्धि ) रूपी हीरा है । इसलिए प्रत्येक मनुष्यका कर्तव्य है कि, वह उसको सदैव उज्ज्वल रखनेका प्रयत्न करे-हमेशा विवेकबुद्धिसे काम ले ।"
" यद्यपि ऐहिक और पारलौकिक सम्पत्तिका आधार ईश्वरकी योग्य पूजा है, तथापि बालकोंकी सम्पत्तिका आधार उनके पिताओंकी आज्ञाका पालन है।"
" खेद है कि, सम्राट हुमायु बहुत बरस पहले ही मर गये
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