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________________ सम्राट्का शेषजीवन | ३५१ नेके लिए मेरी अनुमति चाहेगा तो मैं प्रसनता पूर्वक उसे दूँगा । कारण, यदि वास्तव में उसने अपने आपको जगतसे - जो कि केवल अज्ञानियोंहीको अपने अधिकारमें रख सकता है-भिन्न कर लिया है तो उसे उसीमें रहने के लिए विवश करना निंद्य और दोषास्पद है । परंतु यदि वह बाह्याडंवर ही करता होगा तो उसे अवश्यमेव उसका दंड मिलेगा । " X " जब बाज पक्षीको - वह दूसरे प्राणियों को मारकर खाता है इसलिए - अल्पायुका दंड मिला है; अर्थात् उसकी उम्र बहुत छोटी होती है; तत्र मनुष्य जातिके भोजनके लिए भिन्न भिन्न प्रकारके अनेकानेक साधनों के होते हुएमी जो मनुष्य मांस-मक्षणका त्याग नहीं करता है उसका क्या होगा ? " x X X ८ एक स्त्रीकी अपेक्षा विशेष स्त्रियोंकी इच्छा करना, अपने नाका प्रयत्न करना है ! हाँ यदि पहली स्त्रीके पुत्र न हो अथवा वांझ हो तो दूसरी स्त्री खाना अनुचित नहीं है । " I X x X Jain Education International X X X (2 यदि मैं कुछ पहले समझने लगा होता तो, अपने अन्तःपुरमें अपने राज्यकी किसी भी स्त्रीको बेगम बनाकर न रखता, कारण, - प्रजा मेरी दृष्टि मेरी सन्तानके समान है । " X X x For Private & Personal Use Only X "घनायकका कर्तव्य है कि, वह आत्माकी परिस्थितिको जाने और उसको सुधारनेका प्रयत्न करे । उसका कर्तव्य Ethopकी तरह X www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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