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सूरीश्वर और सम्राट्।
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इसी तरह अकबर इस बातका भी पूरा ध्यान रखता था अब्दुल्ला था । — मख्दमुल्मुल्क ' यह उसका खिताव था। उसे ' शेख-उलइस्लाम' नामका दसरा खिताब भी था । उसको दोनों खिताब हुमायुने दिये थे। प्रो. आजादने ' दर्बारेअकबरी' में लिखा है कि, उसको — शेख-उलइस्लाम' का खिताब शेरशाहने दिया था । वह धर्माध सुनी था । वह प्रारंभहीसे अवुल्फजलको भयंकर आदमी बताता आया था । उसने फतवा दिया था कि,-" इस समय मकाकी यात्रा करना अनुचित है। कारण, मका जानेके खास दो मार्ग है । एक ईरानका और दूसरा गुजरातका । दोनों ही निकम्मे है । यदि इसनमें होकर लोग जाते हैं तो वहाँक शिया लोग यात्रियोको सताते हैं और यदि लोग गुजरातमें होकर जलमार्गसे जाते हैं तो मेरी
और जीसिसकी तस्वीरोंको-जो पोर्तुगीजोंके जहाजोपर रक्खी रहती हैदेखना पड़ता है । अर्थात् मूर्तिपूजा देखनी पड़ती है । इसलिए दोनों मार्ग निकम्मे हैं।" ____ मख्दमुल्मुल्क बड़ा ही चालाक आदमी था। इसकी - चालाकियोंयुक्तियों के सामने बड़े बड़े लोंगोकी युक्तियाँ सत्त्वहीन मालूम होती थीं। कहा जाता है कि उसने शेखों और समस्त गरीबोंके साथ निदेयताका व्यवहार किया था । उसकी निर्दयताकी बातें एक एक करके प्रकट होने लगी थी। इसी लिए बादशाहने उसे, विवश करके, मक्का भेज दिया था। इसके मकान लाहोरमें थे। उनमें कई लंबी चौड़ी कबरें थीं। इन कब के लिए कहा जाता था कि वे पूर्व पुरुषोंकी थी। उन कबरोंपर नीला कपड़ा ढका रहता था और दिनमें भी उनके आगे दीपक जला करते थे । मगर वास्तवमें वे कबरें नहीं थीं; उनके नीचे तो अनीतिसे एकत्रित किया हुआ धन गड़ा हुआ था।
मख्दू मुलमुल्क मकासे लौटकर ई. स. १५९२ में अहमदाबादमें मर गया । उसके बाद काजीअली फतेपुरसे लाहौर गया था । उसको वहाँ मख्दमुलमुल्कक घरमेंस बहुतसा धन मिला था। उपर्युक्त कवरों में कई ऐसी पेटियाँ भी निकली कि जिनमें सेनेकी ईटें था। इनके अलावा तीन करोड नकद रुपये भी उनमेंसे निकले थे।
ऊपरका हाल जानने के लिए देखो, आईन-इ-अकबरी प्रथम भागके अंग्रेजी अनुवादका पृष्ठ १७२-१७३, ५४४, तथा ' दारे अकबरी ' ( उर्दू) का १० ३११-३१९.
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