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________________ सम्राट्का शेषजीवन | ३४५ विभाग था कि, अप्रामाणिक मनुष्य इसमेंसे इच्छानुकूल रकम हड़प कर सकता था । मगर अकबर इतनी सावधानी से उसकी देखरेख करता कि एक पाई भी उसमें से कोई नहीं खा सकता था। शेख अब्दुलनवीके हाथमें जब इस विभागका कार्य था तब उसने कुछ गोटाला किया था, परंतु अकबरने तत्काल ही इसको जान लिया था । सन् १९७८ ई. में उसको इस विभागसे दूर कर मेरुदमुल्मुल्क के साथ मक्का भेज दिया था और उस विभागको अपने अधिकारमें लिया था । • १ शेख अब्दुलनबीके पिताका नाम शेख अहमद था । वह इंदरी । जिला 'गंगो' ( सहारनपुर ) का रहनेवाला था । उसके पितामहका नाम अब्दुलकदूस था | अब्दुलनवी ' सर्युघाल' भागमें ई. सन् १५६४ से १५७८ तक रहा था । जब कभी किसीको जमीन देनी होती थी तब उसे मुज़फ्फरख़ाँसे जो उस समय वज़ीर और वकील था सलाह लेनी पड़ती थी । ई. स. १५६५ में उसको सदरे सदूर' का पदवी मिली थी । अब्दुलूनबी और मख्दूमुलुल्क के आपसमें बहुत विरोध था । मखदूमने उसके विरुद्ध कई लेख प्रकाशित कर उसे शारवान के खिजरखाँ और मीरहब्शीका ख़ूनी बताया था | अब्दुलूनबीने मख़दूमको मूर्ख प्रसिद्ध कर शाप दिया था । इसके लिए ही उल्माओं में दो दल हो गये थे । अकबरने अब्दुलनवी और मखदूम दोनोंको सन् १५७९ ई० में मक्का की तरफ रवाना कर दिया था और बगेर हुक्म वापिस हिन्दुस्थान में नहीं आनेकी सख्त ताकीद कर दी थी । अब्दुद्नबी को मक्का जाते समय अकबरने सत्तर हजार रुपये दिये थे यह जब मक्का से लौटकर वापिस आया तब इसकी जाँच करनेका काम अबुल्फजुलको सौंपा गया था और इसकी देखरेख नीचे वह नजरकैद भी रक्खा गया था | कहा जाता है कि, एक दिन अबुल्फ़ज़लने उसको, वादशाह के इशारेसे, गला घुटवाकर मरवा डाला था । यह बात इक़बालनामे में लिखी है। विशेषके लिए देखो 'आईन-इ-अकबरी' -- के अंग्रेजी अनुवादके प्रथम भागका पृ. २७२-७३ तथा दर्बारेअकबरी पृ. ३२०-३२७. २- मरुदूमुल्मुल्क सुल्तानपुरका रहनेवाला था । उसका नाम मौलाना 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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