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सूरीश्वर और सम्राट्। यण, हरिवंशपुराण तथा भास्कराचार्यकी लीलावती और इसी तरहके दूसरे खगोल तथा गणित विद्याके ग्रंथोंका उसने फारसीमें अनुवाद करवाया था। संगीत विद्याके सुनिपुण विद्वानोंका भी उसने अपने दर्बारमें अच्छा सत्कार किया था । कहा जाता है कि, उसके दर्बारमें ५९ कवि थे। फैजी उन सबमें श्रेष्ठ समझा जाता था। १४२ पंडित
और चिकित्सक थे। उनमें ३५ हिन्दु थे । संगीत विशारद सुप्रसिद्ध गायक तानसेन और बाबा रामदास भी अकवरकी ही सभाके चमकते हुए हीरे थे। ऐसे भिन्न भिन्न विषयोंके विद्वानों का आदर-सत्कार ही बता देता है कि अकबर पूर्ण साहित्यप्रेमी था ।
अकबर इस बातको भली प्रकार जानता था कि, बड़े विभागोंमें पोल भी बड़ी ही होती है । इस बातका उसे कई बार अनुभव भी हुआ था। और जैसे जैसे उसको इस बातका विशेष अनुभव होता गया, वैसे ही वैसे वह स्वयं प्रत्येक बड़े विभागका निरीक्षण करने लगा। अकबरके अनेक विभागोंमें एक विभाग ऐसा भी था कि, जिसमें 'जागीर ' और 'सर्युघाल का कार्य होता था। यह एक ऐसा
सयुघाल यह चगताई शब्द है । इसका अर्थ होता है जीवन-पोषणकी सहायता । इसका अरबी शब्द है — मदद-उल-माश' फारसीमें इसके लिए 'मदद-इ-माश' शब्द आता है। इसके विषयमें अबुल्फ़ज़ल लिखता है कि, अकबर चार प्रकारके मनुष्योंको, उनके गुजारेके लिए, पेन्शन अथवा जमीन देता था । उनके प्रकार ये हैं- १) जो संसारसे अलग रहकर ज्ञान और सत्यकी शोध करते थे । (२) (३) जो निर्बल एवं अपाहिज होनेसे कुछ भी कार्य नहीं कर सकते थे ( ४ ) जो उच्च कुलमें जन्म पाकर भी ज्ञानके अभावसे अपना भरण-पोषण नहीं कर सकते थे । इन चार प्रकारके मनुष्योंको जो रकम गुजारेके लिए दी जाती थी वह 'मदद-ई-माश' कहलाती थी। इसका समावेश सयुघालकी अंदर हो जाता है । देखो आईन-इ-अकबरी के प्रथम भागके अंग्रेजी अनुवादका पृ० २६८-२७०
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