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सम्राट्का शेषजीवन । होगया था, जसौ पहले कहा जा चुका है, कि अकबर मुसलमान धर्मसे भ्रष्ट होगया था। कहा जाता है कि, तुरानके राजा अबदुल्लाखाँ उज्बेगने भी अकबरके धर्मभ्रष्ट होनेकी अनेक झूठी सच्ची बातें सुनी थीं, इसलिए इसके संबंध अकबरको उसने एक पत्र लिखा था । अकबरने उसका उत्तर इस प्रकार दिया था,
"लोग लिख गये हैं कि ईश्वरके एक लड़का था। पैगम्बरके लिए भी कई कहते हैं कि वह तो जादूगर था। जब ईश्वर और पैग़म्बर भी लोगोंकी निंदासे न बचे तब मैं कैसे बच सकता हूँ ? "
चाहे कुछ भी था; परन्तु अपने आपको निर्दोष मनानेके लिए उसने कितना सुंदर उत्तर दिया था !
___ अकवर साहित्यका पूरा शौक़ीन था। साहित्यमें धर्मशास्त्रों और ज्योतिष, वैद्यक आदि समस्त विद्याओंका समावेश होनाता है। अकबर सबमें रुचि रखता था, इसीलिए अथर्ववेद, महाभारत, रामा.
१ उज्बेग लोगोंके और मुगलोंके आपसमें चिरकालसे शत्रुता थी। इस शत्रुताका अन्त इस अब्दुल्लाखाँ उज्बेगकी मृत्यु (ई. स. १५९७ ) के बाद हुआ था । ई. स. १५७१ में इसी अब्दुल्लाखाँका एक दूत अकबरके दर्बारमें आया था। अकबरने उसका उचित सत्कार किया था । अकबरने ता. २३ सन् १५८६ ई. को अब्दुल्लाखाँके पास एक पत्र भेजा था । उसमें लिखा था,
" काफ़िर फिरंगियोंका-जो समुद्रके टापुओंपर आकर बस गये हैंमुझे नाश करना चाहिए । ये विचार मने अपने हृदयमें रख छोड़े हैं।
" उन लोगोंकी संख्या बहुत बढ़ गई है । वे यात्रियों और व्यापारियोंको कष्ट पहुँचाते हैं । हमने खुदजाकर रस्ता साफ करनेका इरादा किया था............"
देखो डा० विन्सेंट ए. स्मिथके अंग्रेजी अकबरके पृ० १०, १०४, और २६५
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