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________________ सम्राट्का शेषजीवन | ૩૨૭ कि और नौकर भी कई चोरी करना न सीख जायँ । यहाँ तक कि हाथियोंकी खुराक से भी कोई चुरा न ले इस लिए उसने अपने हाथियोंको तेरह भागों में विभक्त किया और प्रत्येक विभागके हाथियोंको अमुक वजनकी खुराक दिलाने लगा । इससे यदि कोई थोड़ीसी चोरी भी खुराक करता था तो वह ताल ही पकड़ लिया जाता था । अकबरने सब तरहकी व्यवस्था करनेका गुण अपने पितासे सीखा था । कहा जाता है कि, हुमायूँ में यह गुण उत्तम था; परन्तु उसके दुर्गुणोंने उसे इस गुणको काममें न लाने दिया । अकबर राज्यव्यवस्थामें जैसी सावधानी रखता था वैसी ही सावधानी वह राजनैतिक षड्यंत्रोंसे बचे रहने में भी रखता था । पूर्वके इतिहाससे और अपने अनुभवोंसे उसे निश्चय हो गया था कि, चंचल राज्य लक्ष्मी के लिए और अपनी सत्ता जमाने के लिए, पिता पुत्रका, पुत्र पिताका और भाई भाईका खून कर डालता है । इस ज्ञानही के कारण वह अपने सारे कार्य व्यवस्थापूर्वक, नियमित और होशियारी के साथ करता था । उसको प्रतिक्षण यह भय लगा रहता था कि, कहीं कोई उसकी असावधानीका दुरुपयोग न करे । इसी लिए वह अपनी सारी दिनचर्या नियमित रखता था । उसकी कार्यप्रणाली जानने योग्य है । वह नींद बहुत ही कम निकालता था। थोड़ा शामको सोता था और थोड़ा सवेरे के वक्त । रातका बहुत बड़ा भाग कामकाज करही में बिताता था । दिन निकलनेमें जब तीन घंटे बाकी रहते तब वह भिन्न भिन्न देशों से आये हुए गवैयोंका गायन सुनता । जब एक घंटा रात रहती तब प्रभुभक्ति करनेमें लगता और दिन निकलने पर थोड़ा बहुत कोई काम होता तो उसे समाप्त कर वह सो जाता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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