________________
JanuawnapadiaReasurmu
-
-
गेहूँ
जव
सूरीश्वर और सम्राट्। अपने पेटकी चिन्ता सबसे पहले और ज्यादा होती है; और पेटका खड्डा चलनी सिक्कोंसे-नोटोंसे-या रुपयोंसे नहीं भरता। इसको भरनेके लिए अनाज, घी, दूध, दही आदि पदार्थोकी आवश्यकता है। ऐसे पदार्थ उस समय कितने सस्ते थे, इस विषयमें W. H. Moreland नामक विद्वान्का — दी वेल्यु ऑफ मनी एट दी कोर्ट ऑफ अकबर । नामक लेख अच्छा प्रकाश डालता है। उसके लेखसे मालूम होता है कि, उस समय सदा उपयोगमें आनेवाली वस्तुओंका भाव निम्न प्रकारसे था :--
१ रु. के १८५ रतल ।
१ रु. के २७७॥ रतल । हलकेसे हलके चावल १ रु. के १११ रतल । गेहूँका आटा , १४८" दुध
" ८९ ,
" २१ , सफेद शकर काली शकर नमक
" १३७ , जवार
" २२२ ॥ बाजरी
" २७७॥ " उपर्युक्त देरसे यह बात सहन ही समझमें आसकती है कि,
१ देखो; जर्नल ऑफ दी रॉयल एसियाटिक सोसायटीके इ. स. १९१८ के जुलाई और अक्टोबरके अंक. पे. ३७५ से ३८५ तक ।
२ विन्सेंट ए. स्मिथने अपनी ‘अकबर' नामकी पुस्तकके पृ० ३९० में अकबरके समयके जो भाव दिये हैं, वे भी उपर्युक्त भावोंके साथ लगभग मिलते जुलते ही हैं । कुछ फर्क घोके भावमें मालूम होता है । अर्थात्
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org