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________________ सम्राका शेषजीवन | ३३३ रेलगाड़ियाँ या हवाई विमान नहीं थे। एक जगह से दूसरी जगह समाचार पहुँचानेका साधन सिर्फ़ कासीद थे । तो भी सरलतासे डाक पहुँचाने के लिए प्रति छः माइल एक आदमी रक्खा गया था। उसके द्वारा हर जगह डाक पहुँचाई जाती थी । बहुत दूरके आवश्यक समाचार पहुँचाने के लिए साँढनी सवार थे। वे समाचार पाते ही नियत स्थानपर पहुँचाने के लिए तत्काल ही रवाना होजाते थे । अकबरने प्रजाके सुखके लिए जो अनुकूलताएँ करदी थीं उनसे एक ओर जैसे प्रजा निश्चित थी वैसे ही दूसरी ओर दैनिक उपयोग में आनेवाली वस्तुएँ इतनी सस्ती थीं कि गरीबसे गरीब मनुष्य के लिए भी अपना गुजारा चलाना कठिन नहीं था । बेशक अभीकी तरह चलनी सिक्कोंकी बाहुल्यता - कागजके नोटों, चेकों और नकली धातुके सिक्कों की बाहुल्यता - न थी । मगर जब आवश्यक पदार्थ सस्ते होते हैं तब विशेष सिक्कोंकी आवश्यकता ही क्या रहजाती है ? मनुष्य जातिको मुगल बादशाहोंकी मुहरों में साधारणतया जो कुछ लिखा रहता था वह नीचे से ऊपर पढ़ा जाता था । इससे राज्यकर्ता सम्राट्का नाम सबसे ऊपर रहता था । कहा जाता है कि, मुगलोंकी उन्नति के समय में उनकी मुहरें बहुत छोटी अर्थात् १ या १|| इंच व्यासकी रहत' थीं । उनमें जो कुछ लिखा रहता था वह बहुत ही सादी और नम्र भाषामें रहता था । पीछे जब मुगलोंका पतन प्रारंभ हुआ तब बड़े बननेकी तीव्र इच्छा रखनेवाले प्रधानाने, केवल ' के शाहन्शाहोंके हाथोंमेंसे राज्याधिकार अपने हाथमें लिया और उनके नामोंकी मुहरें बहुत बड़ी बड़ी बनवाईं। वे बहुत सुंदर थीं। उनमें के लेख बहुत ऊंची श्रेणिके थे । , नाम लिए ' जर्नल १०० से मुगलोंकी मुहरोंसे संबंध रखनेवाली विशेष बातें जानने के ऑफ दी पंजाब हिस्टोरिकल सोसायटी' के पाँचवें वॉल्यूम के पृ० १२५ तक में छपा हुआ The Rev. Father Felix ( o. C. ) का " प्रथम भागका लेख बहुत उपयोगी है । तथा, देखो ' आइन - ई-अकबरी अंग्रेजी अनुवाद । पृ० ५२ व १६६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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