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सूरीश्वर और सम्राट्। इस बातको हम भली प्रकार जानते हैं कि, अकबरके समयमें,
चौथी एक मुहर थी उसको नमकीनने बनाया था । ( यह नमकीन काबुलका था) पीछेसे इस प्रकारकी छोटीबड़ी मुहरोंको दिल्लीके मौलाना अलीअहमदने सुधारा था । इनमेंसे जो छोटी और गोल मुहर थी वह 'उजुक' (चगताई) के नामसे पहचानी जाती थी । वह 'फर्मान-ईसबतीस के लिए काममें आती थी। 'यह फर्मान-ई-सबतीस' तीन बातोंके लिए निकाला गया था। (१) मनसबका निर्वाचन करनेके लिए (२) जागीरके लिए (३) सयूषालके लिए । दुसरी एक बड़ी थी। इसमें शाहन्शाहके पूर्वजोंके नाम थे। यह पहले तो विदेशी राजाओंको पत्र लिखे जाते थे, उन पर लगानेके काम में आती थी; पीछेसे उपर्युक्त 'फर्मान-ई-सबतीस' में भी लगाई जाने लगी।
इसके सिवा दूसरे फर्मानों के लिए एक चौकोर थी। उसके ऊपर ' अल्लाहो अकबर जल्ले जलालहू' लिखा था । ___ऊपर जो ‘उजूक' नामकी मुहर बताई गई है वह अकबरकी अंगुलीमें पहननेकी अंगूठी थी । अकबरका पिता हुमायुं भी ऐसी अंगूठी रखता था, और उसका मुहरकी तरह उपयोग करता था । यह बात इस पुस्तकके २५३ वे पृष्ठमें दिये हुए फुटनोटके वृत्तान्तसे भी प्रमाणित होती है ।
कहा जाता है कि, ई. स. १५९८ में (अकबरके राज्यके ४२ वें वर्ष) अकबरने ईसाई उपदेशकों (Jesuit missionaries ) को जो फर्मान दिया था उसकी मुहरको देखनेसे पता चलता है कि अकबरकी मुहरमें सब आठ गोलाकार थे। उसके बाद जहाँगीरने अपने नामका एक गोलाकार और बढ़ाकर नौ कर दिये थे । उसके पीछेसे आनेवाले बादशाहोंने भी अपने अपने नामका एक एक गोलाकार बढ़ादिया था ।
ऊपर्युक्त प्रकारसे अकबरकी मुहरमें आठ गोलाकार थे इसका कारण यह जान पड़ता है कि, वह तैमूरलंगसे आठवीं पीढीमें था।
कई लेखकोंका अनुमान है कि, भारतमें, मुगलोंकी हूकूमतमें भी राजाओं, प्रधानों, बड़े बड़े अधिकारियों तथा फौजी अधिकारीयोंकी भी उनके रुतबेके माफिक, भिन्न भिन्न मुहर थीं। उनमें उनके नामोंके अलावा सम्राटुकी दी हुई पदवियाँ भी उनमें खुदी रहती थीं । रुतबेके अनुसार मुहरको काममें लानेके लिए मिले हुए हकका संवत् और हिजरी सन भी उनमें लिखा रहता था।
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