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________________ सम्राट्का शेषजीवन । जीवनोपयोगी पदार्थ उस समय कितने सस्ते थे। कहाँ आज रुपयेके ५ रतल गेहूँ और कहाँ उस समय १८५ रतल ? कहाँ आज रु. का ३-४ रतल गेहूँका आटा और कहाँ उस समय १४८ रतल ? कहाँ आज रु. का ५ रतल दूध और कहाँ उस समय ८८ रतल ! कहाँ आज रु. का लगभग पौन रतल घी और कहाँ उस समयका २१ रतल । क्या भारतवर्षके अर्थशास्त्री बता सकते हैं कि, देश पहलेकी अपेक्षा उन्नत हुआ है या अवनत ! जिस देशमें बहुत बड़ी संख्याको एक वक्तका अनाज ( घी, दूधकी तो बात ही नहीं ) मिलना भी, कठिन हो; पेट में एक एक बालिश्तके खड्डे पड़ गये हों; आँखें ऊँडी धंस गई हों, गाल सूख गये हों, चलते पैर काँपते हों; और सन्तान निर्माल्य पैदा होती हो; उस देशको उन्नत बतानेका साहस कौन करसकता है ? संभव है कि देशमें सिक्के (जैसा कि, पहले कहा जाचुका हैं ) बढ़े हों; मगर उन सिक्कोंसे मनुष्य जातिकी शारीरिक और मानसिक शक्तिके विकासमें क्या लाभ हो सकता है ? यदि कोई कहे कि ' अभी जो भाव बढ़ गये हैं इसका कारण लड़ाई है ? तो इसमें कुछ सत्यांश है; मगर जिस समय देशपर लड़ाईका कोई प्रभाव नहीं हुआ था उस समय भी लड़ाईके पहले भी-वस्तुएँ सस्ती न थीं। उपर्युक्त विद्वान्ने अकबरके भावोंके साथ ही सन् १९१४ के भाव लिखे हैं । वे इस प्रकार हैं, मि० मोरलेंडने धीका भाव ऊपर लिखे अनुसार रु. का २१ रतल बताया है और मि० स्मिथने रु. का १३३ रतल लिखा है । १ लड़ाईके वाद जो भाव बढ़े हैं वे लड़ाई के वक्तसे सवागुने हैं। इससे स्पष्ट है कि, इसका कारण खास लडाई नहीं मगर विदेशोंमें मालका जाना है। अनुवादक। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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