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________________ सूरीश्वर और समाइ। Puhura NAAmoes और राज्यकी पूर्ण सत्ता अधिकारमें करचुका तब उसने सोचा कि, मैं अब अपनी इच्छानुसार हरएक कार्य कर सकूँगा। अकबरका जीवन यह बात अच्छी तरहसे प्रमाणित करता है कि, पुरुषार्थी जब चाहते हैं तभी अपने कार्यमें सफलता लाभ कर सकते हैं। राज्यकी पूर्ण सत्ता अपने हाथमें लेनेके बाद अकबरने अपनी इच्छाएँ पूर्ण करनेके प्रयत्न प्रारंभ किये। अकबरके कामोंसे हम यह कह सकते हैं कि, उसके मनमें तीन चार बातें खास तरहसे चक्कर लगा रही थीं । प्रथम यह कि, उसके पहलेवाले राजा जैसे, अपना नाम स्थिर कर गये थे वैसे ही वह भी अपना नाम अमर कर जाय । दूसरी यह कि, सारे सूबेदार उसकी आज्ञा पाले। तीसरी यह कि, उसके पिताके समयमें जो राज्य स्वाधीन हो गये हैं उन्हें वह वापीस आने आधीन कर ले। और चौथी यह कि, राज्यकी अन्तर्व्यवस्थाको-जो अनेक परिवर्तनोंके कारण खराब हो गई थी-पुनः सुधार ले। इन्हीं चार बातोंके पीछे उसने अपना सारा जीवन बिताया था। तीसरे प्रकरणमें कहा गया है, उसके अनुसार 'दीनेइलाही' नामक धर्म चलाने में उसका हेतु ख्याति लाभ करनेके सिवा दूसरा कुछ भी नहीं था । हाँ यह सच है कि, वह इस हेतुको पूर्ण करनेमें सफल नहीं हुआ; कारण, उसका चलाया हुआ धर्म उसके साथ ही लुप्त हो गया । तोभी इतना तो कहना ही पड़ेगा कि, उसने अपने जीवनमें उसका, यदि पूर्णरूपसे नहीं तो विशेष अंशोंमें आनंद अवश्यमेव ले लिया था। उसके धर्मको माननेवाले–यदि सच्ची श्रद्धासे नहीं तो भी दाक्षिण्यतासे या स्वार्थसे ही-अच्छे अच्छे हिन्दू और मुसलमान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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