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________________ प्रकरण तेरहवाँ । सम्राट्का शेषजीवन । पने प्रथम नायक हीरविजयसूरि के संबंध में बहुत कुछ कहा जा चुका है | अब अपने दूसरे नायक सम्राट् अकबर के अवशिष्ट जीवन पर कुछ प्रकाश डाला जायगा । यद्यपि अकबरके गुण-अवगुणके संबंध में तीसरे प्रकरणमें और उसके किये हुए जीवदया संबंधी कार्यो के विषय में पाँचवें प्रकरण में उल्लेख हो चुका है तथापि अकबर के जीवन से संबंध रखनेवाली अन्यान्य बातोंकी उपेक्षाकर यदि पुस्तक समाप्त कर दी जाय तो उतने अंशोंमें न्यूनता रह जाय । इसलिए इस प्रकरण में अकबर के जीवनकी अवशिष्ट बातोंका उल्लेख किया जायगा । Jain Education International यह प्रसिद्ध बात है कि अकबर बचपनहीसे तेजस्वी और चंचल स्वभावका था । तीसरे प्रकरण इस विषय में उल्लेख हो चुका है । यद्यपि उसको अक्षरज्ञान प्राप्त करनेकी रुचि नहीं थी, तथापि नई नई बातें जानने और विविध कलाएँ सीखने के लिए वह इतना आतुर रहता था, जितना अफीमची वक्तपर अफीम के लिए रहता है । बाल्यावस्थाहीसे वह चाहता था कि, मैं जगत् में प्रसिद्ध होऊँ और लाखों करोड़ों मनुष्योंको अपने आज्ञापालक बनाऊँ । राज्यगद्दीपर बैठने के बाद भी जबतक वह बहेरामखाँके आधीन रहा तबतक अपनी भावनाएँ पूर्ण न कर सका । जब वह बहेरामखाँ के बंधन से मुक्त हुआ 39 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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