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सूरीश्वर और सम्राट् ।
प्रति उसकी भक्ति अनेक गुनी बढ़ गई । उसको और अबुलफजलको सरिजीके स्वर्गवासका बहुत दुःख हुआ । वह अनेक प्रकारसे सूरिजीकी स्तुति करने लगा । कवि ऋषभदासने बादशाहके मुखसे सूरिनीकी स्तुतिके जो शब्द कहलाये हैं उन्हींके भावके साथ हम इस प्रकरणको समाप्त करते हैं:---
" उन जगद्गुरुका जीवन धन्य है जिन्होंने सारी जिन्दगी दूसरोंका उपकार किया और जिनके मरने पर ( असमयमें ) आम्रफले और जो स्वर्गमे जाकर देवता बने ॥ ५ ॥
x x x x इस जमाने में उनके जैसा कोई सच्चा फकीर न रहा x x x x ॥६॥
जो सच्ची कमाई करता है वही संसारसे पार होता है । जिसका मन पवित्र नहीं होता है उसका मनुष्यभव व्यर्थ जाता है ॥ ७॥
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