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________________ निर्वाण । यही विजयसेनसरि, हीरविजयसूरिके पाटपर बैठे । हीरविजयसूरिकी तरह इन्होंने भी जैनधर्मकी विजयवैजयन्ती फर्राई । इस प्रकरणको समाप्त करनेके पहले हीरविजयसूरिके निर्वाणके समय एक आश्चर्यकारक घटना हुई थी उसका उल्लेख करना भी आवश्यक है। कवि ऋषभदास लिखता है कि,-जिस दिन हीरविजयसूरिका निर्वाण हुआ था उस दिन रातके समय, जहाँ सूरिजीका अग्नि संस्कार हुआ था वहाँ पासके खेतमें रहनेवाले एक नागर बनिएने नाचरंग होते देखा था । सवेरे ही गाँवमें जाकर उसने लोगोंको यह बात सुनाई । लोगोंके झुंडके झुंड बगीचेमें आने लगे। वहाँ उन्हें नाचरंग तो कुछ नहीं दिखाई दिया; मगर आमके पैडोंपर फल देख पड़े। किसीपर मौरके साथ छोटे छोटे आम थे; किसी पर जाली पड़े हुए आम थे और किसीपर परिपक्व हो रहे थे । कई ऐसे आमके पेड़ भी फलोंसे भरे हुए थे जिनपर कमी फल आता ही न था और जो वंध्य आमके नामस प्रसिद्ध थे। भादवेका महीना और आम ! लोगोंके आश्चर्यका कोई ठिकाना न रहा । एक दिन पहले जिन वृक्षोंपर मौरका भी ठिकाना न था दूसरे दिन उन्हीं वृक्षोंको फलोंसे लदा देखकर किसे आश्चर्य न होगा ? __ श्रावकोंने कुछ आम उतार लिये और उनमेंसे अहमदाबाद, खम्भात और पाटण आदि शहरोंमें थोडे थोडे भेजे । अकबर और अबुलफजलके पास भी उनमेंसे आम भेजे गये। जिन लोगोंने वे आम देखे उनको अत्यंत आश्चर्य और आनंद हुआ। सम्राट्को भी सूरिजीके पुण्य बाहुल्यपर अमिमान हुआ। सूरिजीके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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