SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूरीश्वर और सम्राट्। दर्शन नहीं लिखे थे इसलिए उनके बहुत प्रयत्न करने पर भी उन्हें दर्शन नहीं हुए । भादवा वदि ६ के दिन विजयसेनसूरि पाटणमें मंदिरमें पहुँचे उस समय पाटणके श्रापक हीरविजयसूरिके निर्वाण समाचार सुनकर देववंदन कर रहे थे। विजयसेनसूरिने इस शुभाशाको लिए हुए पाटणमें प्रवेश किया था कि, पाटणमें मुझे गुरुजीके स्वास्थ्यके समाचार मिलेंगे; उनको तो वहाँ पहुँचनेपर विघातक समाचार मिले । सूरिजीकी निर्वाणकी बात सुनकर उनके हृदयमें एक आघात लगा। थोड़ी देर निस्तब्ध होकर वे खड़े रहे । अन्तमें मूच्छित होकर गिर पड़े। थोड़ी देर बाद जब उनकी मूर्छा गई तब वे बेचैन होकर इधर उधर घूमने लगे। कभी बैठ जाते, कभी उठ खड़े होते बड़बड़ाते,-" अरे यह क्या हुआ ? मैं ऊना जाकर किसको वाँगा ? अब वहाँ क्या है ? गुरुदेव मुझे दर्शन देनेको भी न ठहरे ? " अनेक प्रकारके संकल्प विकल्प उनके मनमें उठने लगे । वे न आहार करते थे न जल पीते थे; न उपदेश देते थे न किसीके साथ बातचीत ही करते थे । जब कभी कोई उन्हें देखता वे गंभीर विचारमें निमग्न दिखाई देते । जब कभी बोलते तो यही बोलते " अरे हीर-हंस मानसरोवरसे उड़ गया ! प्रभो ! हमको बीचमें छोड़कर कहाँ चले गये ? अब हमारी क्या दशा होगी? हम किसकी प्रेमछायामें रहेंगे ? जैनशासनका क्या होगा ? " इसी तरह तीन दिन निकल गये। .. .. .. चौथे दिन पाटणका संघ एकत्रित हुआ। उसने विजयसेन. सूरिको अनेक तरहसे समझाया; आश्वासन दिया। इससे उनका चित्त , कुछ स्थिर हुआ । उन्होंने अपने हृदयको मजबूत बनाया; धैर्य धारण किया। उस दिन उन्होंने कुछ आहारपानी लिया। उसके बाद वे अपने साथके मुनियों सहित ऊना पहुंचे। वहाँ सूरिजीकी पादुकाकी भाव सहित वंदना की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy