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________________ निर्वाण । २९९ हीरविजयसूरिका निर्वाण होते ही सर्वत्र हाहाकार मच गया । ऊनाके संघने यह दुःखदायी समाचार गाँव-गाँव में पहुँचानेके लिए कासीद रवाना किये । जिस गाँवमें यह समाचार पहुँचा उसीमें शोक छागया । गाँवों और नगरोंमें हड़ताले पड़ने लगी । हिन्दु, मुसलमान और अन्यान्य धर्मवालोंको इस समाचारसे दुःख हुआ। जिन पुरुषरत्नोंकी विद्यमानतासे भारतवर्षकी राष्ट्रीय और धार्मिक स्थितिमें बहुतसे सुधार हुए थे; जिनके कारण भारतवासी कुछ सुखके दिन देखने लगे थे उनमेंसे एक रत्न चल बसा । उसके चले जानेसे दुःख किसे न होता ? ऐसी कमीसे-जो पूरी नहीं हो सकती थीकिसके हृदयपर आघात न लगा होगा ? दूसरी तरफ सूरिजीकी अन्त्येष्ठी क्रियाके लिए उना और दीवका संघ तैयारी करने लगा । उन्होंने तेरह खंडका एक विमान बनवाया । वह कथिया मखमल और मशरुसे मढा गया था । मोतीके झूमकों, चाँदीके घंटों, स्वर्णकी घूघरियों, छत्र, चामर, तोरण और चारों तरफ अनेक प्रकारकी फिरती हुई पुतलियोंसे वह ऐसा सुंदर सजाया गया था कि, देखनेवाले उसको एक देवविमान ही समझने लगे। कहा जाता है कि, उसको बनानेमें दो हजार लाहरियाँ खर्च हुई थीं। उनके अलावा दो ढाई हजार लाहरियाँ दूसरी खर्च हुई थीं। केशर, चंदन और चूआसे सूरिजीके शरीर पर लेप किया गया । उसके बाद शब पालकीमें रक्खा गया । घंट नाद हुआ। बाजे बने । प्रतिष्ठित पुरुषोंने पालकीको उठाया । जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! के शब्दोंसे आकाशमंडल गूंन उठा । हजारों लोग अपनी श्रद्धाके अनुसार रुपये पैसे और बादाम उछालने लगे। मार्गमें पुष्पों की वृष्टि होने लगी । आवाल वृद्ध नरनारी अपने मकानोंकी छतोंपर और झरोखोंपर चढ़ चढ़कर भावपूर्वक वंदना करने लगे। पालकीके पीछे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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