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________________ निर्वाण | ... " २९३ हीरविजयसूरिके प्रधान शिष्य और उनकी गद्दीके अधिकारी विजयसेनसूरि उस समय अकबर बादशाहके पास लाहौरमें थे। मूरिनीको गच्छकी बहुत चिन्ता रहा करती थी। उनके हृदयमें ये ही विचार बार बार आया करते थे कि,-विजयसेनसूरि यहाँ नहीं हैं । वे बहुत दूर हैं। यदि पासमें होते तो गच्छ संबंधी सारी बातें उन्हें बता देता । एक दिन उन्होंने अपने पासके समस्त साधुओंको एकत्रित करके कहा कि, "जैसे हो सके वैसे जल्दी विजयसेनसूरिको यहाँ बुलानेका प्रयत्न करो।" ___ साधुओंने विचार करके और किसी आदमीको न भेजकर धनविजयजीहीको रवाना किया । बड़ी बड़ी मंजिलें तै करके वे बहुत जल्दी लाहौर पहुँचे । उन्होंने विजयसेनसूरिसे कहा कि,-" सूरिजी विशेष रूपसे रुग्ण हैं और आपको बहुत स्मरण किया करते हैं । " . इस समाचारको सुनकर विजयसेनसूरिको बड़ा दुःख हुआ । उनका शरीर शिथिल पड़ गया । वे थोड़ी देरमें अपने आपको सँभालकर बादशाहके पास गये और सूरिजीकी रुग्णताके समाचार सुनाकर बोले कि,-"महाराजने मुझे शीघ्र ही बुलाया है "उस समय बादशाह उन्हें अपने पास ही रहनेका आग्रह न कर सका । उसने विजयसेनसूरिजीको गुजरात जानेकी अनुमति दे दी । अपनी ओरसे सूरिजीको प्रणाम करनेके लिए भी कहा। 'विजयप्रशस्तिमहाकाव्य । के कर्ताका मत है कि, विजयसेनसूरि जब अकबर बादशाहके पास नंदिविजयजीको रखकर गुजरातमें आते थे तब महिमनगरमें उन्हें हीरविजयसूरिकी बीमारीके समाचार मिले थे। चाहे कुछ भी हो मगर इतनी बात तो निर्विवाद है कि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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