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सूरीश्वर और सम्राट् । करनेका महान् प्रयत्न करते हुए भी, आत्मशक्तिके विकासाथ भरसक तपस्याकी थी और जीवनको सार्थक बनाया था ।
मूरिनीकी विद्वत्ताके विषयमें भी यहाँ कुछ कहना आवश्यक है। वे साधारण विद्वान् नहीं थे । यद्यपि उनके बनाये हुए 'जम्बू. द्वीपप्रज्ञप्तिटीका' और ' अन्तरिक्षपार्श्वनाथस्तव ' आदि बहुत ही थोड़े ग्रंथ उपलब्ध हैं तथापि उन्हें देखने और उनके किये हुए कार्योंपर दृष्टिपात करनेपर उनकी असाधारण विद्वत्ताके विषयमें लेशमात्रभी शंका नहीं रहती है। उस समयके बड़े बड़े जैनेतर विद्वानोंके साथ वाद करनेमें तथा आलिमफाजिल सूबेदारों पर
और खास करके समस्त धर्मोका तत्त्व-शोधनेमें अपनी समस्त जिंदगी बिताने वाले अकबर बादशाहपर धार्मिक प्रभाव डालने में सफलता प्राप्त करना, साधारण ज्ञानवालेका काम नहीं हो सकता, यह स्पष्ट है । अकबरने अपनी धर्मसभाके पाँच वर्गोंमेंसे पहले वर्गमे उन्हीं लोगोंको दाखिल किया था कि, जो असाधारण विद्वान् थे। उसी प्रथम वर्गके सूरिजी सभासद थे। इस बातका पहले उल्लेख हो चुका है।
इन सारी बातोंसे यह बात सहन ही समझमें आ सकती है कि, हीरविजयसूरि प्रवर पंडित थे।
अब उनके जीवनके संबंधों कहने योग्य कोई भी बात नहीं रही । ज्ञान, ध्यान, तपस्या, दया, दाक्षिण्य, लोकोपकार और जीवदयाका प्रचार आदि सब बातोंसे अपने ग्रंथनायक हीरविजयसूरिने निज जीवनको सार्थक किया था। इस प्रकार जीवनको जो सार्थक कर लेते हैं उन्हें मृत्युका भय नहीं रहता । उनको मृत्युसे इतनी ही प्रसन्नता होती ही जितनी प्रसन्नता मनुष्यको झोंपड़ीसे महलमें जानेमें होती है।
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