________________
२८९
जीवनकी सार्थकता। उनमें त्यागवृत्ति विशेष थी। सदैव वे गिनतीकी बारह चीजें ही काममें लाते थे । छट्ट, अहम, उपवास, आंबिल, नीवि और एकासनादि तपस्याएँ तो वे बातकी बातमें करलिया करते थे। ऋषभदास कविके कथनानुसार उन्होंने जो तपस्याएँ अपने जीवनमें की थीं वे इस प्रकार हैं:
" इकासी तेले, सवा दो सौ बेले, छत्तीस सौ उपवास, दो हजार आंबिल और दो हजार नीवियाँ की थीं। इनके सिवाय उन्होंने वीस स्थानककी आराधना बीस बार की थी; उसमें उन्होंने चारसौ चौथ और चारसौ आंबिल किये थे। भिन्न भिन्न भी चारसौ चौथ किये थे। सूरिमंत्रकी आराधना करनेके लिए वे तीन महीनेतक ध्यानमें रहे थे। तीन महीने उन्होंने एकासन, आंबिल, नीवि और उपवासादिहीमें बिताये थे। ज्ञानकी आराधना करनेके लिए भी उन्होंने बाईस महीने तक तपस्या की थी। गुरुतपमें भी उन्होंने तेरह महीने बेले, तेले, उपवास, आंबिल और नीवि आदिक तपस्याओंमें बिताये थे । इसी तरह उन्होंने ज्ञान, दर्शन और चारित्रकी आराधनाके ग्यारह महीनोंका और बारह प्रतिमाओंका भी तप किया था । " आदि
आत्म-शक्तियों का विकास यूँहीं नहीं होता। यदि खानेपीने और इन्द्रियोंके विघयोंहीमें लुब्ध रहनेसे आत्मशक्तियोंका विकास होता तो क्या संसारका हरेक आदमी नहीं कर लेता ? आत्मशक्तिका विकास करनेमें-लाखों मनुष्योंपर प्रभाव डालनेकी शक्ति प्राप्त करने अत्यन्त परिश्रम करना पड़ता है । महावीरदेव सम्पूर्ण आत्मशक्तिको कत्र विकसित कर सके थे ? जब उन्होंने बारह बरसतक लगातार तपस्या की थी तब । इन्द्रिय-विषयासक्ति मिटाये बिना, दूसरे शब्दोंमें कहें तो इच्छाका निरोध किये बिना तपस्या नहीं होती । तपस्याके विना कर्मोका क्षय होना असंभव है । हीरविजयसूरिने जगत्पर उपकार
37
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org