________________
-
२७८
सूरीश्वर और सम्राट् । अंजार पहुँचकर अजारापार्श्वनाथकी यात्रा की । दीवका संघ सूरिजीको वंदना और विनति करनेके लिये आया और बड़ी धूम-धामके साथ यहाँसे दीवमें ले गया । वहाँसे ऊने जाते हुए लोगोंने सूरिजीको मोतियोंके थालोंसे वधाया । कहा जाता है कि, उस समय सूरिजीके साथ पचीस साधु थे । वहाँ रहकर सूरिजी प्रति दिन नवीन नवीन अभिग्रह-नियम लेने लगे।
सूरिजी हमेशा ऊनामें व्याख्यान, करने लगे । हजारों लोग उनसे लाभ उठाने लगे । अनेक उत्सव हुए। मेघजी पारख, लखराज रूडो और लाड़कीकी माँने सूरिजीसे प्रतिष्ठाएँ करवाई। श्रीश्रीमालवंशी शाह बकोरने अपना द्रव्य समार्गमें खर्च कर सूरिजीके पाससे दीक्षा ली । इनके अलावा और भी अनेक क्रियाएँ जैनोंमें हुई। सूरिनी जब ऊनामें थे तब जामनगरके जाम साहबका दीवान अबजी मनसाली भी सूरिजीको वंदना करने आया था। उसने सूरिनीकी
और दूसरे साधुओंकी स्वर्णमुद्रासे नवआँगी पूजा की थी। एक लाख मुद्राका ढुंछन किया था और याचकोंको बहुतसा दान दिया था। सं० १६५१ का चौमासा सूरिजीने ऊनाहीमें बिताया । चौमासा बीतने पर यद्यपि सूरिजीने विहारकी तैयारी की तथापि श्रावकोंने विहार नहीं करने दिया। क्योंकि सूरिनीकी तबीयत खराब थी। अतः उन्हें वहीं रहना पड़ा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org