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शेष पर्यटन । कुछ काल पालीतानेमें रहनेके बाद, सूरिजीने विहार करनेका और संबने विदा होनेका निश्चय किया । भिन्न भिन्न स्थानोंसे आये हुए गृहस्थ सरिजीसे अपने अपने स्थान पर पधारनेकी विनती करने लगे । उनमें से भी खास करके खंभातके सिंघी उदयकरणकी और दीक्के मेघनी पारख, दामनी पारख और सवनीशाहकी विनति विशेष आग्रहपूर्ण थी। इन दोनों स्थानोंके गृहस्थोंने अपने अपने नगरमें पधारनेका अत्यंत अनुरोध किया। दीवकी लाड़कीबाई नामकी एक श्राविका थीं। उन्होंने सूरिजीसे प्रार्थना करते हुए कहा:-" आपने स्थान: स्थान पर विहार करके सर्वत्र प्रकाश किया है, परन्तु हम अब तक अँधेरेहीमें भटकते हैं। इस लिए दया करके आपको दीव पधारना ही चाहिए । ” अन्तमें मूरिजीने दीवके संघको कहा:-- " जैसी तुम्हारी इच्छा होगी और जिससे सबको सुखशान्ति होगी वही काम किया जायगा ।"
दीवका संघ बहुत प्रसन्न हुआ। एक मनुष्य वधाई लेकर पालीतानेसे दीव पहुँच गया । वहाँके श्रावकोंने इस शुभ समाचारको सुन कर आनंद प्रकट किया और वधाई देनेवालेको चार तोले स्वर्णकी जीभ, वस्त्र और बहुतसी ल्याहरियाँ इनाममें दीं।
जब अनेक देशों और गाँवोंके बहुत बड़े जन-मंडलमेंसे सूरिजी खाना हुए तब वह मंडल गुरु-विरहके दुःखसे दुखी हुआ । उस समय बिछुड़ते हुए संघके हृदयमें इस बातका स्वभावतः विचार होने लगा कि-न जाने अब सूरिजीके दर्शन होंगे या नहीं ? और इस विचारने उन्हें और भी दुखी बनादिया । गुरुजीसे दूर होते समय सबका चहरा उदास था । सूरिनी और उनके शिष्यवर्गने निराग मावसे दीवकी तरफ विहार किया । पालीताणासे रवाना होकर दाठा, महुवा आदि स्थानोंमें होते हुए सूरिजी देलवाड़े पहुँचे । वहाँसे
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