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________________ Navnama Annr सूरीश्वर और सम्राट् । मंद करते थे और अपने जीवनको सुधारनेके लिए उत्तमोत्तम नियम ग्रहण करते थे। सर्वत्र देववंदना करनेके बाद सूरिजी एक स्थान पर बैठे। तब सारे संघवालोंने गुरुवंदना प्रारंभ की। डामर संघवीने मूरिजीको वंदना करते हुए सात हजार महमूदिकाएँ खर्ची । गंधारका रामजीशाद जब गुरुवंदन करने लगा, तब सूरिजीकी उस पर दृष्टि पड़ी। सरिजीने उसको कहा:-" क्यों ? वचन स्मरण है न?" रामजीशाहने उत्तर दिया:--" हाँ साहिब ! मैंने वचन दिया था कि जब मेरे सन्तान होजायगी तब मैं ब्रह्मचर्यव्रत धारण कर लूंगा ।" सरिजीने कहा:" तब, अब क्या विचार है ? मैंने सुना है कि, तुम्हारे सन्तान हो गई है। " रामजीने कहा:-" महाराज ! मेरा सद्भाग्य है कि, मुझे ऐसे पवित्र स्थानमें आपके समान महान गुरुके पाससे व्रत लेनेका अवसर मिला है।" उसके बाद उसी समय रामजीने और उसकी स्त्रीनेजिसकी आयु केवल बाईस बरसकी थी-जीवनभरके लिए ब्रह्मचर्यजत धारण कर लिया। छोटी उम्रमें इन दोनों स्त्री पुरुषोंको ब्रह्मचर्यव्रत धारण करते देख दूसरे अनेक स्त्री-पुरुषोंने भी ब्रह्मचर्यवत स्वीकार किया। उसके बाद पाटणके ककु शेठने भी ब्रह्मचर्यव्रत धारण किया । उनके साथ अन्य तिरपन मनुष्योंने भी ब्रह्मचर्यव्रत अंगीकार किया। ऋषभदास कवि लिखते हैं कि-हीरविजयसूरिकी पूजा करने में ग्यारह हजार भरुची (एक प्रकारकी मुद्रा ) की उपज हुई थी। इस तरह सिद्धाचलजी तीर्थ पर शुभ भाव पूर्वक देववंदन और ब्रतग्रहणादि क्रियाएँ करनेके बाद सब नीचे उतरे; पालीताना गाँव में आये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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