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________________ प्रकरण ग्यारहवाँ । जीवनकी सार्थकता। जै से सूर्य उदय होकर अस्त भी जरूर होता है उसी तरह जन्मके पश्चात् मृत्यु भी अवश्यमेव आती Evioeर है । सम्राट् हो या मंडलेश्वर, धनी हो या निर्धन, BREALLY गरीब हो या अमीर, बालक हो या वृद्ध, स्त्री हो या पुरुष, चाहे कोई हो; साक्षात् देव ही क्यों न हो-जो जन्मा है उसे जल्दी या देरमें मरना अवश्य होगा । मगर मौतमौतमें भी फरक है । जिन्होंने जन्म धारण करके अपने जीवनको सार्थक कर लिया है उन्हें अपनी मृत्यु आनंददायक मालूम होती है। कारण उन्हें यह विश्वास होता है कि, मुझे निंद्य-तुच्छ-मानवी देहका त्यागकर दिव्य शरीर प्राप्त होगा । सच है, जिस मनुष्यको विश्वास हो कि मुझे इस झोंपड़ीको छोड़नेके बाद महल रहनेके लिये मिलेगा, वह झोपड़ी छूटनेसे दुखी नहीं होता । विपरीत इसके जो अपने जीवनको सार्थक न करके हाय ! हाय ! में रहता है उसे मरना भी हाय! हाय ! में ही पड़ता है और जन्मान्तरमें भी वह हाय ! हाय ! उसका पीछा नहीं छोड़ती है। जीवनकी सार्थकता उत्तमोत्तम गुणोंके आचरणमें है। दया, दाक्षिण्य, विनय, विवेक, समभाव और क्षमादि बातें ही उत्तम गुण हैं। ये ही जीवनकी सार्थकताके हेतु हैं। अपने नायक हीरविजयसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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