________________
शेष पर्यटन |
२७३
उपर्युक्त वर्णनके सिवा हीरसौभाग्यकाव्यके कर्ताने एक महast बात लिखी है; और वह यह है कि, सूरिजी कई दिनों तक सिद्धाचल पर्वत पर रहे थे ।
सिद्धाचलजी के समान पवित्र तीर्थस्थानपर रात रहना निषिद्ध है, परन्तु हीरविजयसूरिकी अवस्था ज्यादा हो गई थी । बारबार चढ़ना उतरना उनके लिए कठिन था, इसलिए विवश होकर अपवाद रूपसे वे ऊपर रात रहे थे । हीरसौभाग्यकी टीकामें भी वे क्यों ऊपर रात रहे थे ? इस प्रश्नका यही उत्तर दिया गया है * ।
कवि ऋषभदासने भी हीरविजयसूरिरासमें इस यात्राका वर्णन किया है । वह भी खास जानने योग्य है। उसने लिखा है:--
1
" तलहटी में तीन स्तूप हैं । उनमेंसे एकमें ऋषभदेवजीकी, दूसरे में धनविजयजीकी और तीसरेमें नाकरकी चरण पादुकाएँ हैं । उन तीनों स्थानों में सूरिजीने और संघने स्तुति की । वहाँसे धोलीपरब पर जाकर कुछ विश्राम किया । वहाँ शर्बत पिलाया जाता था । वहाँसे तीसरी बैठक में गये । यहाँ कुमारकुंड है । चौथी बैठकका नाम ' हिंगलाजका हड़ा ' है । सूरिजी पाँचवीं बैठक पर चढ़ने में थक गये थे, इस लिए उन्होंने सोमविजयजीका सहारा लिया । शलाकुंड पर यात्रियोंने जल पी कर थोड़ा आराम लिया । यहाँ ऋषभ1 देवीकी पादुका भी है। संघ सहित सुरिजीने इनकी वंदना की । वहाँसे आगे चले । छठी बैठक पर दो समाधियाँ देखीं । वहाँसे सातवीं बैठक में गये । वहाँ दो मार्ग दिखाई दिये । बारीमें घुसकर
1
* देखो हीरसौभाग्यकाव्य सर्ग १६, श्लोक १४१ पृ. ८४७०
35
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org