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सूरीश्वर और सम्राट् ।
जाते हुए चौमुखजीका मंदिर आता है और दूसरे मार्ग से जाते हुए सिंहद्वार आता है । सूरिजी संघ सहित सिंहद्वार होकर गये । सबसे बड़े मंदिर में पहुँच कर पहिले श्री ऋषभदेव भगवान के दर्शन किये और फिर तीन प्रदक्षिणाएँ दीं । परिक्रमामें एक सौ चौहद छोटे छोटे चैत्य हैं । उनमें एक सौ बीस निर्जित्र हैं । उनके दर्शन किये। फिर एक सौ आठ मध्यम चैत्योंमें और बड़े मंदिरोंमें सब मिलकर २४५ जिनबिंब हैं, उनके दर्शन किये । इनके अलावा एक सुंदर समवसरण है । उसके दर्शन कर रायणवृक्षके नीचेकी चौरानवे पादुकाओंके और तलघरके अंदरकी दो सौ प्रतिमाओंके भी दर्शन किये । वहाँसे सूरिजी और दूसरे सभी लोग कोटके बाहर आये। कोटसे बाहिर आकर सबसे पहिले खरतरवसी में दो सौ जिनबिंबोंके दर्शन किये । यहाँ ऋषभदेवकी मनोहर मूर्त्तिने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा। वहाँ से पौषधशाला में आकर सूरिजीने और संघने थोड़ी देर विश्राम लिया । कोटके बाहिर सत्रह मंदिर हैं । उनमें दो सौ प्रतिमाएँ हैं । उनको वंदना की । वहाँसे अनोपमतालाब और पाँडवोंकी देवरी पर होते हुए अदबदजी के मंदिर में पहुँचे । उनके दर्शन किये । वहाँसे कवडक्षके दर्शन करते हुए सवासोमजी के चौमुखाजी के मंदिर में गये । वह नया बना था । उसके चारों तरफ बावन देवरियाँ थीं । वहाँ एक तलघर में सौ प्रतिमाएँ थीं । उनके भी दर्शन किये। वहाँ एक पीठिका पर दश पादुकाएँ थीं । उनके भी दर्शन करके पुंडरीकजीके मंदिर में आकर दर्शन किये । यहाँ सूरिजीने शत्रुजयका माहात्म्य सुनाया ।
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उपर्युक्त प्रकार से सुरिजीने लाखों मनुष्योंके साथ सिद्धाचलजीकी यात्रा की । ऋषभदास कविके लिखे हुए वृत्तान्तसे यह बात सहज ही मालूम हो जाती है कि, सूरिजीने यात्रा की उस समय ( वि०
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