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सूरीश्वर और सम्राट् ।
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नाथके, अजितनाथ के मंदिरोंमें, पश्चात् पेथडशाहके बनाये हुए मंदिरोंमें दर्शन करते हुए छीपावस्ती में प्रवेश किया । वहाँसे टोटरा और मोल्हा नामक मंदिरोंमें दर्शनकर कपर्दियक्ष और अदददादा के आगे स्तुति की। फिर वे मरुदेवी शिखर से उतरकर स्वर्गारोहण नामकी ट्रंक पर अनुपमादेवीके बनवाये हुए अनुपम नामके तालाब को देखते हुए ऊपर चढ़े और ऋषभदेव के मंदिवाले दुर्गमें गये । इस दुर्ग के पास वस्तुपालकी बनवाई हुई गिरिनारकी रचना है; उसको देखा । वहाँ से खरतरवसती नामके मंदिर में गये । राजीमती और नेमनाथ की मूर्तियों की वंदना की । यहाँ से घोड़ाचौकी नामके मंदिरके और पादुकाके दर्शन कर तिलकतोरण नामके जिनालय में दर्शन किये । वहाँसे सूर्यकुंडको देखते हुए मूल मंदिर के कोटमें घुसे और सीढ़ीयाँ चढ़ने लगे । जीनों पर चढ़ते हुए क्रमश: तोरन, मंदिरका रंगमंडप, ध्वजाओं रंगमंडप के स्तंभों, हाथी पर बैठी हुइ मरुदेवा माता मंदिरके गभारे और खास ऋषभदेव प्रभुकी मूर्तिको देखकर सूरिजीको अत्यन्त आनंद हुआ । ऊपर चढ़कर मूल मंदिरकी परिक्रमामें देवरियोंके अंदर बिराजमान प्रतिमाओंके और रायणवृक्षके नीचेवाली पादुकाके दर्शन किये । उसके पश्चात् जसु ठक्करके बनवाये हुए तीन द्वारवाले मंदिरके, रामजीशाह के बनवाये हुए चार द्वारवाले मंदिरके और ऋषभदेवके सामने विराजमान पुंडरीक स्वामीके दर्शन करके मूल मंदिर में प्रवेश किया । मंडपके अंदर स्थित मरुदेवा माताकी मूर्तिको नमस्कार कर ऋषभदेव भगवानकी भावसहित स्तुति की । तत्पश्चात् बाहर आकर मूलद्वारके आगे जो खुली जगह है उसमें दीक्षादान, व्रतोच्चारण आदि धर्म - क्रियाएँ सूरिजीने करवाई । वहाँसे पुंडरीक गणधरकी प्रतिमाके सामने आकर सूरिजीने ' व्याख्यान दिया ।
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शत्रुञ्जयमाहात्म्य' पर
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