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________________ शेष पर्यटन । २७१ आनेवाले लोगोंको स्थावर और जंगम दोनों तरहके तीर्थोकी यात्रा करनेका अपूर्व अवसर मिला था। स्थावरतीर्थ थे 'सिद्धाचलजी' और जंगमतीर्थ थे हीरविजयसरि । यही हेतु था कि, लाखों मनुष्य उस समय एकत्रित हो गये थे। ऋषभदास कविने लिखा है कि उस यात्रामें एक हजार साधु हीरविजयसूरिके साथ थे। कल चैत्री पूर्णिमा है। कलहीके दिन पुंडरीक स्वामी पाँच करोड मुनियों सहित मोक्षमें गये थे । इस लिए हमें भी कल ही यात्रा करनी चाहिए । पालीताना गाँवसे शत्रुनयगिरि लगभग दो माइल दूर है। सवेरे सारा संघ एक साथ रवाना न हो सकेगा यह सोचकर संघ सहित सूरिजीने चतुर्दशीहीको पर्वतकी ओर प्रस्थान किया। शत्रुजयगिरिकी तलहटीमें, इस समय यात्रियोंके आरामके लिए अनेक साधन हैं; परन्तु उस समय कोई साधन नहीं था। इस लिए हीरसौभाग्यकाव्यके कर्ताका कथन है कि-सूरिजीने शिवजीके मंदिरमें चौदसकी रात बिताई थी। और संबने मैदानमें । दूसरे दिन अर्थात् पूर्णिमाके दिन सवेरे ही बड़े बड़े धनाढ्य गृहस्थोंने सोने चाँदीके पुष्पों और सच्चे मोतियोंसे इस पहाड़को बधाया और सूरिजी सहित सारे संघने शत्रुजयके पवित्र पर्वत पर चढ़ना प्रारंभ किया। धीरे धीरे बड़े उत्साहके साथ, एकके बाद एक मेखला और टेकरीको लाँघते हुए सबने पर्वतके ऊपरि भागके प्रथम दुर्गमें प्रवेश किया । इसके बाद सूरिजी और संघने कहाँ कहाँ दर्शन किये ? इसका वर्णन ' हीरसौभाग्यकाव्य ' में इस प्रकार किया गया है, __ " संघने और सूरिजीने प्रथम दुर्गमें प्रवेश करते ही हाथी पर अवस्थित मरुदेवी माताकी मूर्तिको प्रणाम किया । वहाँसे, शान्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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