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सूरीश्वर और सम्राट् । उपर्युक्त स्थानोंके अलावा इस यात्रामें जेसलमेर, वीसनगर, सिद्धपुर, महसाना, ईडर, अहमदनगर, हिम्मतनगर, साबली, कपडवणन, मातर,सोजित्रा, नडियाद, वडनगर, डाभला, कड़ा,महेमदाबाद,वारेना, बडोदा, आमोद, शीनोर, जंबूसर, केरवाडा, गंधार, सूरत, भडूच, रानेर, दीव, ऊना, घोघा, नयानगर, माँगरोल, वेरावल, देवगिरि, वीनापुर, वैराट, नंदरबार, सीरोही, नडुलाई, राधनपुर, वडली, कुणगेर, प्रांतिज, महिअज, पेथापुर, बोरसद, कडी, घोलका, धंधूका, वीरमगाम, जूनागढ और कालावड आदि गाँवोंके संघ भी आये थे । 'विजयतिलकसूरि रास ' के कर्ता पं० दर्शनविजयजीके कथनानुसार, इस संघमें सब मिलकर दो लाख मनुष्य इकट्ठे हुए थे।
जिस समयकी हम बात लिख रहे हैं, वह वर्तमान समयके जैसा न था । उस समय एक नगरसे दूसरे नगर खबर पहुँचाने में अनेक दिन लग जाते थे । आज तो घंटों और मिनिटोंमें समाचार पहुँचाये जा सकते हैं । उस समय तीर्थयात्रा करनेमें महीनों बीत जाते थे । हजारों लाखों रुपये खर्च होते थे और अनेक प्रकारके कष्ट उठाने पड़ते थे। इस समयमें तो कुछ ही दिनोंमें, थोड़ा ही धन खर्च करने पर विना कठिनतासे लोग यात्रा कर आते हैं। उस समय बहुत ज्यादा धन और समय खर्च करने और जोखम उठाने पर तीर्थयात्रा होती थी, इस लिए बहुत ही कम लोग यात्रार्थ जाते थे । जब बड़े बड़े संघ निकलते थे तभी लोग यात्रार्थ जाते थे। ..
प्रस्तुत यात्रामें इतने प्रान्तोंके संव आये थे। इसका यही कारण था कि, ऐसा अपूर्व प्रसंग बार बार नहीं आता है। उस समय वर्णन अपनी ‘समेतशिखर-तीर्थमाला' में किया है। देखो तीर्थमाला संग्रह भाग पहला पृ. २२-३२ तक ।
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