________________
शेष पर्यटन |
२६९
अन्तिम भागमें चलती हुई, सुंदरियोंके, सिद्धाचलजी के चरणस्पर्श करनेको उत्साहित करनेवाले गीत अन्तःकरणों को आनंदसे भरदेते थे। लाखों मनुष्यों की भीड़ में चलते हुए सूरीश्वरजीको हजारों मनुष्य सोना चाँदी के फूलोंसे वधाते थे । गृहस्थ एक दूसरेको केशरके छींटोंसे रँग कर उस दिनके अपूर्व प्रसंगका हर्ष प्रकट करते थे । कवि ऋषभदासने लिखा है कि, उस यात्रामें सूरिजी के साथ बहतर संघवी - सिंघी थे । उनमें शाह श्रीमल्ल, सिंघी उदयकरण, सोनी तेजपाल, ठकर कीका, काला, शाह मनजी, सोनी काला, पासवीर, शाह संघजी, शाह सोमजी, गाँधी कुँअरजी, शाह तोला, बहोरा वरजाँग, श्रीपाल, आदि मुख्य थे । शाह श्रीमल्लके साथ केवल पाँचसौ तो रथ ही थे । घोड़े - पालकी आदि तो हजारों थे। उसके साथ चार जोड़ी नौबत तथा निशान भी थे - ध्वजाएँ थीं ।
इनके अलावा पाटनसे ककुशेठ भी संघ लेकर आये । अवजी महता, सोनी तेजपाल, दोसी लालजी और शाह शिवजी आदि भी पाटणसे संघके साथ आये । अहमदाबादसे तीन संघ आये थे । शाह वीपू और पारख भीमजी संघपति होकर आये थे । पूँजा बंगाणी, शाह सोमा और खीमसी भी आये थे ।
मालवेसे डामरशाह भी संघ लेकर आया था । उसके साथ चंद्रभान, सूरा और लखराज आदि भी थे । मेवात से कल्याण* बंबू भी संघ लेकर आया था। उसने दो सेर शक्कर की भाजी बाँटी थी । मेडतासे सदारंग भी संघ लेकर आया था ।
* यह आगराका रहनेवाला था । उसने समेतशिखरकी यात्रा के लिए एक बहुत बड़ा संघ निकाला था । संघने पूर्वदेश के समस्त तीर्थोंकी यात्रा की थी । श्रीकल्याणविजयजी वाचकके शिष्य पं० जय विजयजीने इस यात्राका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org