________________
ર૬૮
सूरीश्वर और सन्नाट । पालते हुए सूरिजीके साथ ही सिद्धाचलजीकी यात्रा करना स्थिर किया । संघने गुजरात और काठियावाड़के गाँवोंमें और पंजाब, काश्मीर और बंगालके बड़े बड़े शहरोंमें कासिदोंके साथ निमंत्रण भेजे। शुभ मुहूर्तमें संघ सूरिजी और मुनिमंडल सहित धूमधामसे रवाना हुवा । गाडियाँ, रथ, पालकी, ऊँट, घोड़े और हजारों आदमियों सहित संघ आगे बढ़ने लगा। कई मंजिलें पूरी करके संघ अहमदाबाद पहुँचा । उस समय अहमदाबादका सुवेदार अकबरका पुत्र मुराद था । उसने संघ और सूरिजीकी बहुत भक्ति की । सरिजीके उपदेशसे प्रसन्न होकर उसने दो मेवड़े भी सूरिजीकी सेवामें भेजे । .. क्रमशः विहार करता हुआ संघ धोलके पहुँचा । खमात निवासी संघवी उदयकरणने विनति करके संघको थोड़े दिनों तक वहाँ ठहराया। उसीके बीचमें बाई साँगदे और सोनी तेजपाल भी अपने साथ छत्तीस सेजवाला लेकर खंभातसे आगये । वे भी इस संघके साथ ही सिद्धाचलजीकी यात्राको चले ।
जब यह बड़ा संघ पालीतानासे थोड़ा ही दूर रहा तब 'सोरठ'के अधिपति नौरंगखाँको मालूम हुआ कि, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य श्री हीरविजयसूरि एक बड़े संघके साथ सिद्धाचलकी यात्रा करनेके लिए जा रहे हैं, तब वह तत्काल ही उनकी अगवानीके लिए आया । सोरठके मुंबेदारके साथ थोड़ी देर तक सुरिजी वार्तालाप करते रहे । फिर उन्होंने अकबरके दिये हुए कुछ फर्मान उसको बताये । सुबेदार बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सरिजीका बड़ा सत्कार किया। आनंदोसवके साथ सूरिजीका पालीतानामें प्रवेश कराया। एक ओर अनेक प्रकारके बाजोंसे गूंजते हुए गंगनमंडलमें भाटोंकी विरुदावलीकी ध्वनि थी। और दूसरी ओर भजनगंडलियों द्वारा खेलाजानेवाला दाँडियारास और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org