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________________ शेष पर्यटन । उसका वर्णन सातवें प्रकरणके अन्तमें किया जा चुका है । सूरिजी वहाँसे विचरण करते हुवे राधनपुर पधारे । वहीं अकबर . का वह पत्र मिला था, जिसमें उसने विजयसेनसूरिको अपने पास भेजनेकी प्रार्थना की थी। तदनुसार वे भेजे गये थे राधनपुरमें लोगोंने छः हजार सोना महारों, रिनीकी पूजा की । वह विहार कर मूरिजी पाटन पधारे । पाटनमें उस समय उन्होंने तीन प्रति. ठाएँ की थीं। कासमखाँके साथ धर्मचर्चा-जिसका उल्लेख सातवें प्रकरणमें किया जा चुका है-करनेका अवसर भी मुरिजीको उसी समय मिला था। जिस समय सूरिजी पाटनमें थे उस समय उन्हें एक दिन स्वप्न आया कि, वे हाथी पर सवार होकर पर्वतपर चढ़ रहे हैं और हनारों लोग उन्हें नमस्कार कर रहे हैं। सूरिजीने सोमविजयजीको अपना स्वप्न सुनाया । बहुत सोचविचारके बाद सोमविजयजीने उत्तर दियाः" इस स्वप्नका फल आपको सिद्धाचलजीकी यात्रा करना होगा ।' थोड़े ही दिनोंमें यह स्वप्न सत्य हुआ । सूरिजी सिद्धाचलजीकी यात्रा करनेके लिए तत्पर हुए। वहाँ के जैनसंघने भी 'छरी' (एक प्रकारकी क्रिया ) ___x विधिपूर्वक तीर्थयात्रा करनेवालेको 'छरी' पालनेकी शास्त्राज्ञा है । अर्थात् जिनके अन्तमें 'री' आवे ऐसी छः बातें पालनी पड़ती हैं, वे ये हैं, १ एकाहारी (एकवार भोजन करना ). २ भूमि संस्तारी (पृथ्वी पर ही सोना) ३ पादचारी (पैदल चलकर ही जाना) ४ सम्यक्त्वधारी (देव, गुरु और धर्मपर पूर्ण श्रद्धा रखना) ५ सचित्तहारी (सचित्तजीववाली वस्तुओंका त्याग करना ) और ६ ब्रह्मचारी (घरसे रवाना हुए उस समयसे लेकर, यात्रा करके वापिस घर आ तब तक बराबर ब्रह्मचर्यव्रत पालना ।) इस प्रकार ' छरो' पालते हुए जो यात्रा की जाती है वह यात्रा सविधि कही जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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