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________________ anmmmmm २६६ सूरीश्वर और सम्राट्। ब्राह्मणने बहुतसा धन खर्चा । वहाँसे सरिजी सीरोही पधारे । गुजरातसे विजयसेनसरि सरिजीके सामने आते थे, वे भी यहीं मिले। दोनों आचार्योंके एकत्रित होनेसे लोगोंमें अपूर्व उत्साह फैला । दोनों आचार्य सीरोहीमें थोड़े ही दिन तक एक साथ रहे; क्योंकि कई अनिवार्य कारणोंसे विजयसेनसूरिको सूरिनीकी आज्ञासे सीरोही छोड़कर गुजरातमें तत्काल ही जाना पड़ा था। सीरोहीमें हीरविजयसूरिके बिराजनेसे और उनके उपदेशसे शासनोन्नतिके अनेक उत्तमोत्तम कार्य हुए । उस समय सीरोहीके श्रावक इतने उत्साहमें थे कि उन्होंने मूरिनीको आबूकी यात्रा करा कर वापिस सीरोही चलनेकी साग्रह, भक्तिपूर्वक प्रार्थना की और सीरोहीमें लेजाकर उनको चौमासा करवाया । (वि० सं० १६४४ ) सूरिजीको सीरोहीमें चौमासा कराने के लिए राय सुलतान और पूंजा महताका अत्यंत आग्रह था । सीरोहीमें भी अनेक दीक्षामहोत्सव और अन्यान्य धर्मोन्नतिके कार्य कराकर मुरिजी पाटण पधारे । वि० सं० १६४५ का चौमासा उन्होंने पाटणहीमें किया । पाटणसे विहार कर मूरिजी खंभात गये । यहाँ उन्होंने प्रतिष्ठादि कई कार्य किये । ऐसा मालूम होता है कि, उन्होंने सं० १६४६ का चातुर्मास खंभातहीमें किया था। उसी वर्ष धनविजय, जयविजय, रामविजय, भाणविजय, कीर्तिविजय और लब्धिविजयको पंन्यास पद्वियाँ दी गई थीं। वि० सं० १६४७ में इस तरह कई कार्य कर सूरिजी अहमदावाद गये । अहमदावादमें सूरिजीका अच्छा सत्कार हुआ । उनके पधारनेकी खुशीमें कई श्रावकोंने बहुतसा धन दानमें दिया और बड़े बड़े उत्सव किये । वि० सं० १६४८ के साल सूरिनी अहमदाबादहीमें रहे थे। उस समय नवाब आजमखाँके साथ उनका विशेष रूपसे परिचय हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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