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प्रकरण दसवाँ ।
शेष पर्यटन |
प्रकरण के अन्त में हम अपने नायक हीरविजयसूरिको अभिरामाबाद में छोड़ आये हैं । अब हम उनके शेष पर्यटनका हाल लिखेंगे ।
वि० सं० १६४२ ( ई. स. १९८६ ) का चौमासा उन्होंने अभिरामाबाद में बिताया था । उसके बीच में उन्हेंगुजरात में जो भयंकर उपद्रव उपस्थित हुए थे उन्हें शमन कराने के लिए एक बार फिर फतहपुरसीकरी जाना पड़ा । गत प्रकरणमें इस बातका उल्लेख हो चुका है। अभिरामाबादसे विहार करके सूरिजी मथुरा और गवालियरकी यात्रा कर आगरेमें आये । पाँचवें प्रकर
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में यह बात लिखी जाचुकी है । उनके आगमन से आगरेमें धर्मके अनेक उत्तमोत्तम कार्य हुए । वहाँसे विहारकर सूरिजी फिर मेडते पधारे। फाल्गुन चातुर्मास उन्होंने भेडताही में बिताया । वहाँसे विहार कर नागोर गये । वहाँ सूरिजीका बहुत सत्कार हुआ । संघवी जयमल भक्तिपूर्वक सूरिजीको वाँदनेके लिए सामने गया । महाजल महताने भी सुरिजीकी बहुत भक्ति की । यहाँ जैसल - मेरका संत्र भी सूरिजीकी वंदना करनेके लिए आया था। मांडण कोठारी उनमें मुख्य था । इस संवने सूरिजी की सोनैयासे पूजा की । सं० १६४३ का चौमाला खतम होने पर सूरिजी पीड़ पधारे । सूरिजी के पधारने की खुशी में वहाँके ताला नामक एक पुष्करणा
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