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शिष्य परिवार.
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कावीमें, शाह लहुजीने गंधार में और शाह हीराने चिउलमें जिनमंदिर बनवाये थे । इनके अलावा लाहोर, आगरा, मथुरा, मालपुर, फतेहपुर, राधनपुर, कलिकोट, माँडवगढ, रामपुर और डभोल आदिमें अनेक मंदिर उनके उपदेशसे बने थे । भारमल शाहने विराटमें, वस्तुपालने सीरोही में, वच्छराज और रूपाने राजनगर, ककू शाहने पाटनमें, वधु और धनजीने वडली और कुणगेरमें, श्रीमल, कीका और वाघाने शक्करपुरमें * देवालय और पोषवशालाएँ धनवाई थीं । ठक्कर जसराज और जसवीरने महिमदपुर में मंदिर बनवाया था और आबूका संघ
गुजरात के वडनगर गाँवमें लघुनागर ज्ञातीय सियाणा गोत्रका गाँधीदेपाल रहता था । उसका पुत्र अलुआ और पौत्र लाडिका था । इसके बाढुक और गंगाधर नामके दो लड़के हुए | बादुकके दो स्त्रियाँ थीं । एकका नाम था पोपटी और दूसरीका हीरादेवी उन दोनों के तीन पुत्र हुए । पोपटीका कुँवरजी और हीरादेवीका धर्मदास और वीरदास । धन कमानेकी इच्छास बाहुआ गाँधी खंभातमें जा बसा था । खंभातमें उसने हरतरहकी उन्नति की थी । उस समय कावी' तीर्थमें एक मंदिर था । वह अत्यंत जीर्ण हो गया था । उसका जीर्णोद्धार करानेकी कुँवरजीकी इच्छा हुई । परन्तु उसने - जैसा कि प्रशस्ति में कहा गया है - ततः श्रद्धवता तेन भूमि शुद्धिपुरःसरम् । स्वभुजार्जितवित्तन प्रासादः कारितो नवः । उस श्रद्धालु श्रावकने निज भुजबल से उत्पन्न किये हुए द्रव्यसे, जमीन से लेकर सारा मंदिर नवीन तैयार कराया था । और सं० १६४९ के मार्गशीर्ष शुक्ला १३ सोमवारके दिन श्री आदीश्वर भगवानकी स्थापनाकर विजयसेनसूरिके पाससे उसकी प्रतिष्ठां करवाई थी ।
* शक्करपुर, यह खंभातसे लगभग दो माइल पर एक पुरा है । अभी वहाँ दो मंदिर हैं । एक चिन्तामणि पार्श्वनाथका और दूसरा सीमंधरस्वामीका | दोनों मंदिरों में जाननेलायक एक भी लेख नहीं है । केवल आचार्योंकी पादुकाओं पर और ऐसे कुछ ही दूसरे भिन्न भिन्न लेख हैं, जो प्रायः अठारहवीं शताब्दि हैं । ऊपर जिन गृहस्थोंका वर्णन है उनके नामका एक भी लेख नहीं है।
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