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शिष्य-परिवार । रामजी, वर्धमान, और अवजी आदिने अनेक मंदिर बनवाये थे और सहस्रपाद ॥ पातसाहश्रीअकब्बरसभासमक्षविजितवादिवृंदसमुदभूतयशःकर्पूरपूरसुरभीकृतदिग्वधूवदनारविंदभट्टारक श्रीविजयसेनसूरिभिः॥
क्रीडायातसुपर्वराशिरुचिरो यावत् सुवर्णाचलो
मेदिन्यां प्रहमंडलं च वियति अध्नेंदुमुख्यं लसत् । तावत्पन्नगनाथसे वितपदश्रीपार्श्वनाथप्रभो
मूर्तिश्रीकलितोयमत्रजयतु श्रीमजिनेन्द्रालयः॥१॥छः॥..॥ इस लेखसे मालूम होता है कि,-सोनी तेजपाल ओसवाल ज्ञातिका था । उसका गोत्र आबूहरा था। उसके पिताका नाम वछिआ और माताका नाम सुहासिनी था । इससे एक महत्वकी बात भी मालूम होती है । वह यह है कि, यह भूमिगृहवाला जिनमंदिर सोनी तेजपालकी भार्या तेजलदेने अपने पतिकी आज्ञासे बहुतसा धन खर्च करके बनवाया था। बिंबकी प्रतिष्ठा सं० १६६१ के वैशाष वद ७ के दिन विजयसेनसूरिने की थी।
इसी तेजपाल सोनीने एक लाख ल्याहरी खर्चकर सिद्धाचलजीके ऊपर मूल श्रीऋषभदेव भगवानके मंदिरका जीर्णोद्धार कराया था। यह बात सिद्धाचलजी पर मुख्य मंदिरके पूर्वद्वारके रंगमंडपमें एक स्तंभ पर खुदे हुए शिलालेखसे भी सिद्ध होती है।
इस लेखमें कुल ८७ पंक्तियाँ हैं । प्रारंभमें आदिनाथ और महावीर स्वामीकी स्तुति की गई है। फिर हीरविजयसूरि तक पटावली दी गई है
और तत्पश्चात् हीरविजयसूरि और विजयसेनसूरिके प्राभाविक कार्योंका वर्णन किया गया है। उसके बाद तेजपालके पूर्वजोंका नाम देकर लिखा गया है कि, तेजपालने हीर विजयसूरि और विजयसेनसूरिके उपदेशसे जिनमंदिर बनवानेमें और संघभक्ति करने में अगणित धन खर्चा था। उसमें खासकरके सं० १६४६ में खंभातमें सुपार्श्वनाथका मंदिर बनवाया था। इसका भी उल्लेख किया गया है। उसके बाद प्रस्तुत ऋषभदेवके मंदिरका जीर्णोद्धार करानेकी बात लिखकर मंदिरकी ऊंचाई, उसके झरोखे, उसके तोरन आदि तमाम चजिीका वर्णन है। उसके बाद लिखा है कि,-मंदिर सं० १६४९ में तैयार हुआ था । उसका नाम नंदिवर्धन रक्खा गया था। बड़ी धूमधामके साथ उसने ( तेजपालने) शत्रुजयकी यात्रा की थी और हीरविजयसूरिके हाथसे मंदिरकी प्रतिष्ठा कराई थी ।
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