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________________ सूरीश्वर और सम्राट् । कल्याण, दुर्जनमल, गोनाककू, राजिया, वजिया, ठक्कर जसु, शाह धनाढ्यों और उदार श्रावकों से एक था। वि० सं० १६४६ में हीरविजयसूरि जब खंभातमें आये तब ज्येष्ठ सुदी ९ के दिन उसने अनंतनाथकी प्रतिष्ठा कराकर पचीस हजार रुपये खर्चे थे। उसी समय सोमविजयजीको उपाध्यायकी पदवी दीगई थी। उसने खंभातमें एक बहुत बड़ा जिनभुवन बनवाया था। उसका वर्णन करते हुए कवि ऋषभदास हीरविजयसूरिरासमें लिखता है कि, इन्द्रभुवन जस्युं देहरु कराव्यु, चित्रलिखित अभिराम; त्रेवीसमो तीर्थंकर थाप्यो, विजयचिंतामणि नाम हो. ही. ६ ऋषभतणी तेणे मुरति भरावी, अत्यंत मोटी सोय; भुंइरामा जइने जुहारो, समकित निरमल होय हो. ही० ७ अनेक बिंब जेणे जिननां भराव्या, रूपकनकमणि केरा; ओशवंश उज्ज्वल जेणे करीओ, करणी तास भलेरा हो. ही० ८ पृ० १६६ यह मंदिर इस समय खंभातके माणिकचौककी खिड़की में विद्यमान है। उसके भोयरेमें ऋषभदेवकी बड़ी प्रतिमा है। इस भोयरेकी भीत पर एक लेख है। वह उपर्युक्त कथनको ही प्रमाणित करता है। लेख यह है, ॥६०॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥ श्रीविक्रमनृपात् ॥ सं० १६६१ वरषे वैशाष शुदि ७ सोमे ॥ श्रीस्तंभतीर्थनगरव्यास्तव्य ॥ ऊकेशज्ञातीय ॥ आबूहरागोत्रविभूषण ॥ सौर्णिक कालासुत सौर्णिक ॥ वाघा भार्या रजाई ॥ पुत्र सौवर्णिक वछिआ ॥ भार्या सहासिणि पुत्र सौवर्णिक ॥ तेजपाल भार्या॥ तेजलदे नाम्न्या ॥ निजपति ॥ सौवर्णिक तेजपालप्रदत्ताशया॥ प्रभूतद्रव्यव्ययेन ॥ सूभूमिगृहश्रीजिनप्रासादः कारितः॥ कारितं च तत्र मूलनायकतया ॥ स्थापनकृते श्री विजयचिन्तामणिपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं च श्रीमत्तपागच्छाधिराजभट्टारकश्रीआनंदविमलसूरिपट्टालंकार ॥ भट्टारकश्रीविजयदानसूरि तत्पप्रभावक ॥ सुविहितसाधुजनध्येय ॥ सुगृहीतनामध्येय ॥पात॥ साहश्रीअकब्बरप्रदत्तजगदगुरुविरुधारक ॥ भट्टाकर ॥ श्रीहीरविजयसूरि ॥ तत्पद्रोदयशैल ।। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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