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________________ शिष्य-परिवार । ___ एक बार सरिजी जब अहमदाबाद गये थे तब उनके पधारनेकी खुशीमें अच्छे अच्छे गायकोंने सूरिजीकी स्तुतिके सुमधुर गीत गाये। गायकोंके सुमधुर स्वरों और अलौकिक भावोंसे सारी सभा चित्रवत् स्थिर हो गई । भदुआ नामका श्रावक गायकोंपर बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने अपना का हमारके मूल्यका स्वर्णका कंदोरा उतार कर गायकोंको दे दिया । उसके बाद दूसरे श्रावकोंने भी अंगूठी, कंठी, मोती आदि पदार्थ दान दिये । एक चंदेकी सूची भी हुई। लगभग बारहसौ रुपये जमा हुए । वे भी गायकोंको दे दिये गये। इसी तरह पता नामके एक भोजकने हीरविजयसूरिका रास गाया था, उससे प्रसन्न होकर श्रावकोंने उसको एक लाख टके दिये थे। अभिप्राय कहनेका यह है कि, सूरिजीके भक्त इस प्रकार अवसर आने पर बहुतसा धन खर्च देते थे। यह भी सूरिजीहीके पुण्य प्रकर्षकी महिमा के सिवा और क्या है ? अब इस समय एक खास बातकी तरफ़ पाठकोंका ध्यान खींचना हम आवश्यक समझते हैं । हीरविजयसूरिके उपर्युक्त भक्त श्रावकोंके कामोंकी तरफ दृष्टि डालते हैं तो मालूम होता है कि उनकी प्रवृत्ति बहुधा मंदिर बनवानेमें, प्रतिष्ठाएँ करवाने, संघ निकालने और ऐसे ही अन्यान्य कार्योंके समय बड़े बड़े उत्सव करानेमें हुई है। ऋषभदास कविके कथनानुसार केवल सूरिजीने ही पचास प्रतिष्ठाएँ करवाई थीं । और उनके उपदेशसे लगभग पाँच सौ मंदिर बने थे। जैसे-मुलाशाह, कुँवरजी जौहरी, सोनी तेजपाल,x रायमल, आसपाल, भारमल, थानसिंह, मानु. * सोनी तेजपाल खंभातका रहनेवाला था। वह सूरिजीके अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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