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सूरीश्वर और सम्राट् ।
" पानी भरके लाना कुछ सरल
भूखा बैठा हूँ ।" स्त्री ने कहा :नहीं है । देर भी हो जाती है । अगर ऐसा दिमाग रखते हो तो 1 एकाध हाथी ही कहीं से ले आओ। "
याचक क्रोधमें घर से निकल गया और श्रावकोंके मंडल में जाकर हीरविजयसूरिके गुण गाने लगा । अपने गुरुके गुण गाते देख श्रावक उस पर बहुत प्रसन्न हुए । और अनेक प्रकारका दान देने लगे मगर उस याचकने कुछ भी नहीं लिया और कहा: "मैं उसीका दान ग्रहण करूँगा जो मुझे हाथी देगा । "
उसकी बात सुनकर ' सदारंग ' नामके गृहस्थने घरसे अपना हाथी मँगाया और लूणा कर याचक को देना चाहा । एक भोजक वहाँ बैठा हुआ था । उसने कहाकि - " लछणा की हुई चीज पर तो भोजकका हक होता है दूसरेका नहीं ।" सदारंगने तत्काल ही वह हाथी भोजको दे दिया और अकू याचकके लिए दूसरा हाथी मँगवा दिया। थानसिंहने उस हाथीका शृंगार कर दिया | अकू याचक हाथमें अंकुश लेकर हाथी पर सवार हुआ और उमरावोंके तथा बादशाहके पास जाकर भी हीरविजयसूरिकी प्रशंसा करने लगा । फिर वह घर जाकर स्त्रीके सामने अपनी बहादुरी दिखाने लगा । स्त्री बड़ी ही प्रसन्न हुई । कुछ देर के बाद वह बोली:- " हाथी वे रख सकते हैं जो बड़े राजामहाराजा होते हैं, या गाँव-गरासके मालिक होते हैं। हम तो याचक हैं। अपने यहाँ हाथी नहीं शोभता । इसको बेचकर नकद रुपये कर लेना ही अच्छा है । "
अकूको भी यह बात उचित मालूम हुई | उसने हाथी सौ महरोंमें एक मुगलके हाथ बेच दिया ।
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