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________________ सूरीश्वर और सम्राट् । पौषधशालाएँ और जिनप्रासाद बनवाये थे । वह केवल धनी ही नहीं था कवि भी था। उसने कई कविताएँ बनाई थीं। सीरोहीमें आसपाल और नेता थे । इन दोनोंने चौमुखजीके मंदिरमें बड़ी धूमधामके साथ क्रमशः आदिनाथनी और अनंतनाथजीकी प्रतिष्ठा कराई थी। बुरहानपुरमें संघवी उदयकरण, भोजराज, ठक्कर संघजी, हाँसजी, ठक्कर संभूजी, लालजी, वीरदास, ऋषभदास और जीवराज आदि थे। मालवे में डामरशाह और सूरतमें गोपी, सूरजी, व्होरो सूरो और शाह नानजी आदि थे । बडौदेमें सोनी पासवीर और पंचायण, नयेनगरमें अबजी भणशाली और जीवराज आदि थे। और दीवमें पारख मेघजी, अभेराज, पारेख दामो, दोसी जीवराज, शवजी और बाई लाड़की आदि थे। इस प्रकार अनेक गाँवों में सूरिजीके अनेक भक्त श्रावक रहते थे । उनकी सूरिजीपर अटल श्रद्धा थी । सूरिनीके उपदेशसे प्रत्येक कार्य करनेको वे सदा तत्पर रहते थे । इतना ही नहीं, सूरिजीकी पध. रामणी और इसी प्रकारे के दूसरे प्रसंगोमें वे हजारों रुपये दान दिया करते थे। हीरविजयसूरि एकबार खंभातमें थे तब उनका पूर्वावस्थाका एक अध्यापक वहाँ चला गया । यद्यपि सूरिजी उस समय साधु थे, लाखों मनुष्योंके गुरु थे, तो भी उन्होंने अपनी पूर्वावस्थाके गुरुका लाहनूरगढ मझिझ प्रवर प्रासाद करायउ, विजयसेनसूरि बंदि भयो आनंद सवायउ; जां लगइ सूर ससि मेर महि सुरसरिजलु आयासि धुअ, कहि किनदास तां लग तपइ दुरजनसाल प्रताप तुअ॥५४॥ इससे एक खास मतलबकी बात मालूम होति है और वह यह कि, दुनर्जशालने लाहोरमें एक मंदिर बनवाया था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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