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________________ २५५ शिष्य-परिवार। बनवाया था। आगरेमें थानसिंह, मानुकल्याण और दुर्जनशाल था । फीरोजनगरमें अकु संघवी था वह बहुत पुण्यशाली था । छियानवे बरसकी आयु होनाने पर भी उसकी इन्द्रियाँ अच्छी हालतमें थीं। उसकी मौजूदगीमें उसके घरमें इकानवे पुरुष पगड़ी बाँधते थे। उसने कई $ इसने फतेहपुरमें उत्सवपूर्वक सूरिजीके हाथसे जिनबिंबकी प्रतिष्ठा करवाई थी। शान्तिचंद्रजीको उसी समय उपाध्याय पद दिया गया था। इसी तरह उसने आगरेमें भी चिन्तामणिपार्श्वनाथका मंदिर बनवाकर उसमें प्रतिष्ठा करवाई थी। यह मंदिर अब भी आगरके रोशन मुहल्लेमें विद्यमान है। उसमें मूलनायकजीकी मूर्ति तो वही है; परन्तु मंदिर वही मालूम नहीं होता । वि० सं० १६५१ के वैशाख महीनेमें कृष्णदास नामके कविने लाहौरमें दुर्जनशालकी एक 'बावनी' बनाई है। उससे मालूम होता है कि, वह ओसवाल था । गोत्र 'जडिया' था। वह जगुशाहका वंशज था।जगुशाहके तीन पुत्र थे १-विमलदास, २-हीरानंद और ३-संघवी नानू । दुर्जनशाल नानूका पुत्र था । इस दुर्जनशालके गुरु हीरविजयसूरि थे । बावनीके ५३ वे पथसे यह बात स्पष्ट मालूम होती है.हरषु धरिउ मनमझ्झि जात सोरीपुर किद्धि, संघ चतुरविधि मेलि लच्छि सुभमारग दिद्धी; जिनप्रसाद उद्धरइ, सुजस संसार हि संजइ, सुपतिष्ठा संघपूज दानि छिय दंसन रंजइ; संघाधिपत्ति नानू सुतन दुरजनसाल धरम्मधुर, कहि किश्नदास मंगलकरन हीरविजयसूरिंद गुर ॥५३॥ इस कवितासे यह भी मालूम होता है कि उसने सौरीपुरको यात्रा कर चतुर्विध संघकी भक्ति करनमें अपनी लक्ष्मीका सदुपयोग किया था । जिनप्रासादका उद्धार और प्रतिष्ठा भी कराये थे। आगे चलकर दुर्जनशालकी प्रशंसा करते हुए कवि कहता हैलछिन अंगि बतीस चारिदस विद्या जाणइ, पातिसाहि दे मानु पान सुलितान वषाणइ; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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